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ओसवाल जाति का इतिहास
नामक एक पुत्र हैं। भापके बड़े पुत्र इन्द्रचन्दजी का स्वर्गवास हो गया, उनके सुरेन्द्रचन्दजी नामक पुत्र है। आप मन्दिरमार्गीय सजन हैं। आपके यहाँ जवाहरात का व्यापार होता है।
श्री आसकरणजी नखत, राजनांद गाँव लमभग ७० साल पूर्व मारवाद के भियांसर नामक स्थान से आसकरणजी नखत राजनांदगांव भाये। तथा व्यापार शुरू किया। धीरे आपकी राज्य में प्रतिष्ठा बढ़ी। राजनांदगाँव के महंत घासीदासजी, सेठ आसकरणजी नखत से बहुत प्रसन्न थे। तथा राज्य के महत्व के मामलों में सलाह लिया करते थे । नखतजीने राजनांदगांव के आदितवारी, बुधवारी, कामठीबाजार, बोहरा लेन आदि बाजार बसवाये । ओसवाल जाति को राजनांदगाँव में बसाने तथा उसे हर तरह से इमदाद देने में आपका पूर्ण लक्ष्य था। राजनांदगांव का व्यापारिक समाज आपके उपकारों का प्रेम पूर्वक स्मरण करता है। रियासत में आपकी बहुत बड़ी प्रतिष्ठा थी। तथा राजा साहिब आपकी सलाहों की बहुत इज्जत करते थे। संवत् १९५२ में आप स्वर्गवासी हुए । भापके दत्तक पुत्र लखमीचन्दजी भी संवत् १९७८ में गुजर गये । अब इस समय लखमीचन्दजी के पुत्र सूरजमलजी मौजूद हैं। इनकी वय १३ साल की है।
सेठ मयकरण मगनीराम नखत, (कुचेरिया) जालना इस खानदान के लोगों का मूल निवासस्थान बडू (जोधपुर स्टेट) का है। आप श्वेताम्बर मन्दिर आन्नाय को मानने वाले सजन है। कुचेरे से उठने के कारण आपको कुचेरिया नाम से विशेष पुकारते हैं । इस खानदान के रघुनाथमलजी करीब सवा सौ वर्ष पहले मारवाड़ से दक्षिण में आये। आपने यहाँ आकर खेड़े में अपना व्यापार चलाया, तदन्तर इनके पुत्र मयकरणजी ने जालना में उक्त नाम से अपनी फर्म स्थापित की। आपका स्वर्गवास संवत् १९३५ में हो गया। आपके मगनीराजी और धनजी नामक दो भाई और थे। इनमें मगनीरामजी का स्वर्गवास संवत् १९१५ और धनजी का स्वर्गवास संबत् १९२२ में हो गया था। सेठ मयकरणजी और मगनीरामजी के निसंतान गुजरने पर सेठ मगनीरामजी के नामपर सूरजमलजी को दत्तक लिया। सेठ मयकरणजी के स्वर्गवासी होजाने पर सेठ सूरजमलजी ने फर्म के काम को सम्हाला । आपने इस फर्म की बहुत तरक्की की । आपका स्वर्गवास संवत् १९५६ में हुआ।
इस समय इस फर्म के मालिक श्री सेठ सूरजमलजी के पुत्र मोहनलालजी कुचेरिया हैं। आपका संवत् १९३६ में जन्म हुआ। आपके पुत्र न होने से आपनेकिशनलालजी को दत्तक लिया। इस खानदान की दानधर्म की ओर भी अच्छी रुचि रही है। यहाँ के मन्दिर की प्रतिष्ठा में आपने ५०००) सहायता के रूप में प्रदान किये थे। आपकी दुकान पर आढ़त, रूई, वगैरह का धंधा होता है।
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