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श्री श्रीमान
यादा स्थापित किया कई बार आपस में व्यापारियों की बाजी में आप साहसपूर्वक लदे रहे एक बड़ी पूर्व उसमें विजय पाई वायदे के व्यापार से आपका अनुभव बहुत बढ़ा चढ़ा है। इस समय आप ईस्ट इंडिया जूट एसोसिएशन के डायरेक्टर हैं। जूट के वायदे के उपवसाय में आप इस समय प्रभाव व्यक्ति माने जाते हैं। आपके भाई भी आपको इस व्यवसाय में सहयोग प्रदान करते हैं। आप श्वेताम्बर जैन तेरापंथी संप्रदाय को मानने वाले हैं। आपका भफ़िस नं. ४ सेनागो स्ट्रीट कलकत्ता में है।
बम्बोली
सेठ सोभाचन्द माणकचन्द बम्बोली, सादड़ी
इस खानदान वाले प्रथम उदयपुर में रहते थे। इस वंश में पीथाजी हुए जो सादड़ी में भाकर रहने लगे । पोथानी के सबजी नामक पुत्र हुए। सबजी के सोभाचन्दजी तथा माणकचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। सोभाचन्दजी संवत् १९३८ में स्वर्गवासी हुए । सोभाचन्दजी के पुत्र नवलचन्दजी हुए । तथा नवलचन्दजी के केसूरामजी, सालबन्दजी संतोष वग्गजी रूपचन्दनी तथा मेघराजजी नामक ५ पुत्र हुए। इनमें से सांकलचन्दजी को माणकचन्दजी के नाम पर दत्तक दिया गया । इस समय इन आताओं की दो दुकाने पूना में बैकिंग, तथा सराफी काम करतो है। सांकलचन्दजी तथा संतोषचन्दजी दोनों प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। संवत् १९६७ में संतोषचन्दजी का स्वर्गवास हुआ ।
बम्बोली के सुरामजी के पुत्र गुलाबचन्दजी थे। इनके जसराजजी, तेजमकजी, चन्दनमलजी, हस्तीमलजी तथा देवराजजी नामक पाँच पुत्र विद्यमान है। इनमें से तेजमलजी को सांकलचन्दजी के पुत्र पृथ्वीराजजी के नाम पर दतक दिया है। बम्बोली संतोषचन्दजी के मयाचन्दजी, खुबीलालजी तथा बालचंद जी नामक तीन पुत्र विद्यमान है। जिनमें चुनीलालजी, रूपचन्दजी के नाम पर तथा बालचन्दजी, मेघराजजी के नाम पर दसक गये हैं ।
बम्बोली मयाचन्दजी का जन्म संवत् १९४७ में हुआ। आप स्थानीय शुभ चिंतक जैन समाज नामक संस्था के प्रेसिडेण्ट तथा वरकाणा विद्यालय की मैंमेजिंग कमेटी के मेम्बर हैं। सादड़ी के विद्यालय में इस परिवार ने ६०००) छः हजार रुपये दिये हैं। इसी प्रकार सार्वजनिक व धार्मिक कार्यों में आप सहायताएँ देते रहते हैं ।
श्री श्रीमाल
सेठ जेवन्दजी हिम्मतमलजी श्रीश्रीमाल, सिरोही
सेठ जेचन्दली सिरोही के प्रतिष्ठित व्यापारी थे। इनके हिम्मतमब्जी, फोजमलजी और जवानमजी नामक ३ पुत्र हुए। इनको प्रतिष्ठित व्यापारी समझकर महाराव केसरीसिंहजी ने संवत् १९४० की चेतवदी ११ के दिन अपनी स्टेट ट्रेसरी का ट्रेलर बनाया। इस स्टेट बैंकर शिप का काम ५० सालों तक
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