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बैंगानी
बैंगानी परिवार की उत्पत्ति कहा जाता है कि जैतपुर के चौहान राजा जैतसिंहजी के पुत्र वंगदेव अंधे हो गये थे। इनको जैनाचार्य से स्वास्थ लाभ हुआ। इससे उन्होंने श्रावक व्रत धारण कर जैन धर्म अंगीकार किया। इन्हीं बंगदेव की संतानें बैगानी कहलाई।
बैंगानी परिवार लाइन इस परिवार वाले सज्जनों का पूर्व निवास स्थान बीदासर था वहाँ से सेठ जीतमलजी किसी वश लाडनू नामक स्थान पर आकर बसे । जिस समय भाप यहाँ आये थे भापकी बहुत साधारण स्थिति थी। आपके केसरीचन्दजी और कस्तूरचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। सेठ केसरीचन्दजी के तीन पुत्र हुए उनके नाम सेठ जीवनमलजी, इन्द्रचन्दजी और बालचन्दजी हैं। सेठ बालचन्दजी सुजानगढ़वासी सेठ गिरधारीमलजी के पुत्र सेठ छोगमलजी के यहाँ दत्तक चले गये। सुजानगढ़ में आपका अच्छा सम्मान है मापके जातकरणजी नामक एक पुत्र हैं।
सेठ जीवनमलजी-सेठ जीवनमलजी ने सम्बत् १९५० में कलकत्ता जाकर अपनी फर्म सेठ जीवनमक चन्दनमल नाम से स्थापित की और इस पर जट का काम प्रारंभ किया गया। आपकी बुद्धिमानी और होशिपारी से इस व्यापार में सफलता मिली यहाँ तक कि आपने लाखों रुपयों की सम्पत्ति उपार्जित की। कलकवे के जूट के म्यवसाइयों में आपका भासन बहुत ऊँचा था। वहाँ के व्यापारी लोग कहा करते थे। "आज तो ये भाव है और कल का भाव जीवनमल के हाथ है" व्यापार के अतिरिक्त आपका ध्यान दूसरे कामों की ओर भी बहुत रहा। आपके कार्यों से प्रसन्न होकर जोधपुर नरेश महाराजा सुमेरसिंहजी ने आपको मय आल पोलाद पैरों में सोना पहिनने का अधिकार बख्शा। इसके अतिरिक्त आपको और आपके पुत्रों को जोधपुर की कस्टम की माफी का परवाना भी मिला। इतना ही नहीं दरबार की ओर से पोलकी, छड़ी और कोर्ट में हाजिर न होने का सन्मान भी आपको मिला था। आपका स्वर्गवास सम्बत् १९७४ में जयपुर में हुआ। जिस दिन आपका स्वर्गवास हुआ उस दिल कलकत्ते के जूट के बाजार में आपके प्रति शोक प्रकट करने के लिये हड़ताल मनाई गई थी। आपके पुत्र चन्दनमलजी, जवरीमलजी, हाथीमलजी, मोतीलालजी और सूरजमलजो हुए । सेठ मोतीलालजी का स्वर्गवास हो गया उनके पुत्र हनुमानमलजी विद्यमान है।
सेठ चन्दनमलजी-आपका जन्म सवत् १९३४ में हुआ आप व्यापार कुशल पुरुष हैं आपके छः पुत्र हैं जिनके नाम आसकरणजी, नवरतनमलजी, चम्पालालजी, पूनमचन्दजी, कानमलजी और गुलाबचन्दज हैं। इनमें से आसकरणजी सुजानगढ़ निवासी सेठ बालचन्दजी के यहां दत्तक गये हैं।
सेठ जवरीमलजी-आपका जन्म सम्बत् १९३६ में हुआ। भापका ध्यान विशेष कर धार्मिकता की ओर रहा आपका स्वर्गवास सम्बत् १९९० में हो गया। भापके सागरमलगी नामक एक पुत्र हैं। बाबू सागरमलजी देशभक्त हैं।
सेठ हाथीमलजी -आप बचपन से ही बड़े कुशाग्र बुद्धि के सज्जन रहे। इस फर्म के व्यापार