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नौलखा
सेठ नेमीचन्द हेमराज खींवसरा, लोनार (बसर) - इस परिवार का मूल निवास बढ़ी पादू (मेड़ते के पास ) है। वहाँ से सेठ गंभीरमलजी के पुत्र नेमीचंदजी संवत् १९४० में लोनार आये तथा देवकरण चांदमल बोहरा की दुकान पर सर्विस की । पीछे से इनके छोटे भ्राता पेमराजजी आनंदरूपजी, नंदलालजी, देवीचन्दजी तथा चंदूलालजी लोनार माये तथा इन भाइयों ने सम्मिलित रूप में व्यापार भारंभ किया। सेठ पेमराजजी तथा देवीचन्दजी विद्यमान हैं । इनके यहाँ "देवीचंद प्रेमराज" के नाम से व्यापार होता है। देवीचन्दजी के पुत्र उत्तमचंदजी हैं।
____ सेठ अनंदरूपजी का स्वर्गवास संवत् १९७५ में हुआ। आपके पुत्र हेमरानजी का जन्म संवत् १९५४ में हुआ। आपने स्वर्गीय सेठ मोतीलालजी संचेती की निगरानी में हिन्दू मुस्लिम दंगे को व दंगाइयों के आंदोलन को शांत करने में बहुत परिश्रम किया। भाप जातीय कुरीतियों को मिटाने में तथा शुद्धि संगठन में प्रयाशील रहते हैं। आपके यहाँ “नेमीचन्द हेमराज" के नाम से कपड़े का व्यापार होता है।
नौलखा
नौलखा परिवार अजीमगंज सबसे प्रथम सन् १७५० ई० में इस परिवार के पूर्व पुरुब बाबू गोपालचन्दजी नोलखा भजीमगंज आये, आप बड़े व्यापार दक्ष थे । अतः थोड़े ही समय में अच्छी उन्नति करली आपने अपने भतीजे बाबू जयस्वरूपचन्दजी को दत्तक लिया और बाबू जय स्वरूपचन्दजी ने बाबू हरकचन्दजी को दत्तक लिया।
__ हरकचन्दजी नालखा-आप सन् १८५७ में अपने पिता से अलग हो गये और अपने नाम से स्वतन्त्र व्यवसाय प्रारम्भ किया तथा अल्पकाल ही में इसमें अच्छी उन्नति करली। आपने कलकत्ता लधियान साहेबगंज, पुर्णियां, मुर्लीगंज, महाराजगंज और नवाबगंज में अपनी फर्मे खोली । बैंकिंग व्यवसाय के साथ ही जमीदारी खरीदने में भी आपने पूंजी लगाई। फलतः आपकी जमीदारी मुर्शिदाबाद, वीरभूमि
और पूर्णिया जिले में हो गई। आपका स्वर्गवास सन् १८०४ ई० में हुमा । भापके तीन पुत्र हुए जिनमें बूलचन्दजी नोलखा और दानचन्दजी नोलखा का स्वर्गवास सन् 1610 में हुमा। आपके तीसरे पुत्र बाबू गुलाबचन्दजी नोलखा थे।
गुलाबचन्दजी नोलखा-आपने म्यवसाय और स्टेट को अधिक बढ़ाया । आप मुर्शिदाबाद की लाल बाग बेच के १० वर्ष तक ऑनरेरी मजिस्ट्रेट रहे। आपने सन् १८८५ के अकाल में अपनी प्रजा का कर माफ कर दिया और तीन महीने तक दो हजार प्रपीड़ितों को भोजन देते रहे । आपने अजीमगंज का प्रसिद्ध "राजे विला" नामक उद्यान बनवाया। आप बहुत ही लोक प्रिय सहृदय सज्जन थे। आपका स्वर्गवास सन् १८९६ ई. के जून मास में हुआ। आपके पुत्र बाबू धनपतसिंह जी भी उदार और सहृदय सज्जन थे।
धनपतसिंहजी नोलखा-आपने बंगाल सरकारको १५ हजार की रकम अजीमगंज में गुलाब.