________________
गोलेका
जयपुर के रेजिडेंट मि० लडलू साहिब ने अपनी सिफारिश द्वारा उन्हें जयपुर स्टेट का प्रधान बनाया । आपने इस पद पर कई प्रभावशाली काम किये। इनके भाई मिलापचन्दजी भजमेर में रहते थे । सेठ माणिकचन्दजी को बीकानेर स्टेट ने पांव में पहिनने को सोना बख्शा था ।
माणिकचन्दजी के लक्ष्मीचन्दजी तथा मिलापचन्दजी के मोतीलालजी नामक पुत्र हुए । लक्ष्मीचन्दजो के मूलचन्दजी तथा नेमीचन्दजी हुए। इनमें से मूलचन्दजी, मोतीलालजी के नाम पर दत्तक गये । मूलचन्दजी के धनरूपमलजी तथा राजमलजी नामक पुत्र हुए। इनमें से राजमलजी, नेमीचन्दजी के बाल्यावस्था में ही स्वर्गवासी हो जाने से लक्ष्मीचन्दजी के नाम पर दत्तक आये । लक्ष्मीचन्दजी के बाद मूलचन्दजी ही सब कारवार देखते थे। गोलेछा मिलापचन्दजी के समय में इनका काम अजमेर में बहुत अच्छा चलता था। इनकी वहाँ पर हवेलियाँ, बगीचे, मकानात आदि थे। यह घर बड़ा मातवर माना जाता था । इनके बाद मिलापचन्दजी के पौत्र मूलचन्दजी जयपुर में रहने लगे । मूलचन्दजी का संवत् १९६४ में अंतकाल हुआ ।
गोलेछा राजमलजी ने इस फर्म की बहुत उन्नति की । क्यूरियो, मीनाकारी तथा आइल और रंगकी एजन्सी के व्यवसायों से आपने काफी सम्पत्ति उपार्जित की तथा राजदरबार में भी सम्मानित हुए । आपको जयपुर-स्टेट की ओर से दरबार में कुर्सी तथा लवाजमा प्राप्त था। आपने दो वर्ष पूर्व दोसा (जयपुर) में " जयपुर मिनरल डेव्हलपमेंट सिंडीकेट" नाम का सोप स्टोन पाउडर बनाने का मिल करीब १॥–२ लाख की लागत से खोला है आप जयपुर म्युनिसीपेलिटी के भी मेम्बर रह चुके थे । इसके अतिरिक्त और भी समाज सुधार सम्बन्धी कार्यों में भाप भाग लेते थे । आप का अंतकाल मिती माघ वदी २ संवत् १९८९ को हुआ ।
गोछा राजमलजी के पुत्र सोहनमलजी तथा महताबचन्दजी विद्यमान हैं । धनरूपमल जी के बाघमलजी, सिरेमलजी, कानमलजी तथा विनय चन्दजी नामक चार पुत्र हुए। इनमें से सिरेमलजी का अन्तकाल होगया है । शेष सब सज्जन विद्यमान हैं ।
गोलेछा सोहनलालजी का जन्म संवत् १९६३ में हुआ ।। आप बड़े शांत स्वभाव के सज्जन हैं। आपने अपने पिताजी की मृत्यु के पश्चात् दुकान के काम को बड़ी योग्यता से सम्हाला है । आप सुधारक विचारों के हैं तथा नवयुवक मण्डल के कोषाध्यक्ष हैं और अन्य सार्वजनिक संस्थाओं में भाग लेते हैं।
गोलेछा मुन्नीलालजी खुशाल चन्दजी का खानदान, टिएडीवरम् (मद्रास)
इस परिवार का मूल निवास स्थान बीकानेर शहर है । आप भोसवाल श्वेताम्बर जैन समाज
४६७