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पोसवाल जाति का इतिहास
गवालियर में आपका अतिथ्य स्वीकार कर खिल्लत, कण्ठी, सर बंद, व पैरों में सोना वख्शा था। वर्तमान नवाब पालनपुर ने भी इन्हें सम्मान दिया, जम्मू, काश्मीर, करौली, चरखारी, पालीताना आदि के नरेशों ने भी मापको समय २ सम्मानों से विभूषित किया था।
इसके अतिरिक्त जैन श्वेताम्बर समाज में भी आपकी बड़ी प्रतिष्ठा थी। सन् १९०७ में आप पूना जैन कान्फ्रेंस के सभापति के आसन पर अधिष्ठित किये गये। इसी समय डेक्कन एजूकेशन सोसायटी ने भी आपको अपना आजीवन का फेलो बनाया। गवालियर की चेम्बर आफ कामर्स ने आपको अपना अध्यक्ष चुना। गोलेछा नथमलजी महाराजा माधवराव सिंधिया के बड़े प्रिय पात्र थे। महाराजा की नाबालिगो हालत में आपने उन्हें लाखों रुपया उधार दिया था। पिछले दिनों में नथमलजी को बड़ी आर्थिक हानि हुई और उनके दुश्मनों ने महाराजा को उनके खिलाफ कर दिया । इससे महाराजा ने नाराज़ होकर आपको तमाम जमीदारी और स्टेट जप्त करली। इतना ही नहीं इनके ७० वर्ष के वृद्धशरीर को जेल में डाल दिया गया। वहीं कई वर्ष तक जेल यातना सहकर आपका शरीरान्त होगया । भापके पुत्र बाघमलजी हुए।
गोलेछा बाधमलजी-आपका जन्म संवत् १९३९ में हुआ। आपने १५ सालों तक अमझेरा में खजांची का काम किया। सन् १९१६ से १८ तक आप बोर्ड आफ कामर्स एण्ड इन्डस्ट्री के सलाहकार नियुक्त हुए। इसके बाद आप लश्कर नगर के आनरेरी मजिस्ट्रेट बनाये गये । इसके अलावा आप गवालियर की कई कम्पनियों के डायरेक्टर रहे। आपको सन् १९५२ में प्रिंस आफ वेल्स के सामने पेश होने का सम्मान भी मिला। आप जमीदार हितकारिणी सभा के सदस्य थे। सन् १९१७-१८ में आप सेंट जान एम्बुलेंस एसोसियेशन के भवेतनिक कोंसिलर बनाये गये। यह नियुक्ति स्वयं वाइसराय लार्ड चेम्सफोर्ड ने की थी। आप अपने पिताजी के साथ निमंत्रित होकर देहली दरबार में भी गये थे। भापको गवालियर राज्य की अदालत में उपस्थित होने की माफी है। गवालियर राज्य में आपको "राजमान राजे श्री सेठ” आदि सम्माननीय शब्दों से सम्बोधित किया जाता था। विवाह के अवसर पर इस परिवार को नगारा निशान खास बरदार तथा चांदी के होदे सहित हाथी, राज्य की ओर से मिलते थे। इस समय सेठ बाधमलजी जयपुर में निवास करते हैं। आप बड़े समझदार तथा विचारवान पुरुष हैं। पालनपुर दरबार से अब भी आपका पूर्ववत् प्रेम सम्बन्ध है।
गोलेछा राजमलजी जौहरी का खानदान, जयपुर
इस खानदान के पूर्व पुरुष गोलेछा रायमलजी तथा उनके पुत्र मुलतानचन्दजी बीकानेर में निवास करते थे। मुलतानचन्दजी के पुत्र माणकचन्दजी की बुद्धिमत्ता और कार्य दक्षता से प्रसन्न होकर