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गोलेडा
गोलेछा नथमलजी के इन्द्रमलजी, हजारीमरुजी, सोभागमलजी, सिरेमलजी तथा नौरतनमलजी नामक ५ पुत्र हुए। इनमें सिरेमलजी अपने बड़े भाई इन्द्रमलजी के नाम पर दत्तक गये । इन सब भाइयों का कुटुम्ब संवत् १९६१ में अलग २ हुआ। वर्तमान में इस खानदान में गोलेछा सोभागमलजी तथा हजारीमलजी के पुत्र घीसालालजी और सिरेमजी के पुत्र सरदारमलजी विद्यमान हैं। इनके यहाँ लेनदेन का व्यवहार होता है । गोलेछा सोभागमलजी के ३ पुत्र हैं ।
सेठ नथमलजी गोलेछा गवालियर वालों का खानदान
यह परिवार मूल निवासी विचंद फलौदी का है । वहाँ से सेठ धीरजमलजी गोलेछा लगभग १२५ वर्ष पहिले मथुरा होकर गवालियर गये। तथा वहाँ कपड़े का व्यापार आरम्भ किया । इनके तेजमलजी तथा जीरामकजी नामक २ पुत्र हुए 1
गीतमाजी गोडा- आप पास्पकाल से बड़े होनहार प्रतीत होते थे । अतएव आपने अपनी बुद्धिमत्ता से व्यापार में बहुत सम्पत्ति उपार्जित की। सेठ धीरजमलजी की राव राजा दिनकरराव के पिताजी राघोबा दादा के साथ गहरी मित्रता थी। धीरजमलजी के स्वर्गवासी होने पर जब दिनकरराव गवालियर राज्य के प्रधान हुए, तो उन्होंने गोलेछा जीतमलजी को तवरधार जिले का पातेदार बनाया । इस कार्य संचालन में जीतमलजी ने बहुत बुद्धिमानी से काम किया। इससे गवालियर दरबार ने प्रसन्न होकर गवालियर प्रान्त भर का इनको पोतेदार बनाया। इतना ही नहीं महाराजा जयाजीराव सिंधिया कई मामलों में इनकी सलाह लेते थे । तथा बहुत समय इनको अपने साथ रखते थे । अमझेरा तथा नीमच जिलों की सूबेदारी इनके पास बहुत दिनों तक रही। महाराजा ने प्रसन्न होकर इनको एक म्याना प्रदान किया था । आप संवत् १९२० से ४२ तक धौलपुर स्टेट के भी खजांची रहे । आपने सम्वत् १९२८ तथा ३२ में सम्मेद शिखर तथा पालीताना का संघ निकाला । संवत् १९४९ में आप स्वर्गवासी हुए । आपके मृत्यु समय ८ हजार रुपया धर्मार्थं निकाले गये थे ।
सेठ नथमलजी - आप गोलेछा जीतमलजी के पुत्र थे । आपका जन्म संवत् १९११ में हुआ था । आपने अपने पिताजी की मौजूदगी ही में राज्य के पातेदारी का तमाम काम सम्हाल लिया था । आपको गवायिर दरबार ने मीलिटरी ब्रिग्रेट तथा खानगी खाता और खासगो खजाने के काम भी इमामत क्रिये । इस कुटुम्ब का कई राज्यों में बड़ा भारी मान रहा है। दतिया राज्य के भी आप बैकर रहे थे । और आपको इस राज से म्याना, छत्री, हलकारा आदि का सम्मान बख्शा गया था । इतना ही नहीं आप को उक्त राज से जमीन और घोड़ा भी भेंट में दिया गया था । नवाब साहब पालनपुर ने सन् १९०३ में
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