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प्रोसबाल बाति का इतिहास
हजार प्रतिमाएँ है। इसी तरह के कई कार्य चोपड़ां गोत्र के सजनों ने किये। इनके सम्बन्ध में “जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह" नामक ग्रंथ में शिलालेख अंकित हैं।
गंगाशहर का चौपडा (कूकर) परिवार - यह खानदान प्रारम्भ में मारवाड़ के अन्तर्गत रहता था। वहाँ से इसके पूर्वज बीकानेर के दुस्सारण नामक स्थान पर आकर बसे। वहाँ पर इस खानदान में सेठ अमीचन्दजी हुए। ये दुस्सारण से उठकर संवत् १००० के करीब बीकानेर रियासत के गुसाईसर नामक स्थान में आकर रहने लगे। आपके दो पुत्र हुए जिनके नाम क्रमसे सेठ देवचन्दजी और सेठ बच्छराजजी था। सेठ देवचन्दजी के तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः सेठ भौमराजजी, सेठ मेघराजजी और सेठ अखेचन्दजी था। इनमें से पहले सेठ भौमराजजी गुसाईसर में ही स्वर्गवासी हो गये, दूसरे सेठ मेघराजजी गुसाईसर से उठकर गंगाशहर (बीकानेर) में आकर बस गये और तीसरे अक्खैराजजी पंजाब के गैलाला नामक स्थान पर चले गये और वहीं उनका देहान्त हुआ।
सेठ मेघराजजी गुसाईसर और गंगाशहर में ही रहे । इनकी आर्थिक स्थिति बहुत साधारण थी। फिर भी इनका हृदय बड़ा उदार और सहानुभूति पूर्ण था। अपनी शक्ति भर ये अच्छे और परोपकार सम्बन्धी कार्यों में सहायता देते रहते थे। आपका स्वर्गवास संवत् १९६३ के पौष मास में हो गया। आपके क्रमसे सेठ भैरोंदानजी, सेठ ईसरचंदजी, सेठ तेजमलजी, सेठ पूरनचन्दजी, सेठ हंसराजजी और सेठ चुन्नीलालजी नामक छः पुत्र हुए।
सेठ भैरोंदानजी-आपका जन्म संवत् १९३७ की आश्विन शुक्ला दशमी को हुआ। आप शुरू से ही बड़े प्रतिभाशाली और होनहार थे। आप केवल नौ वर्ष की उन्न में संवत् १९४३ में अपने काका मदनचन्दजी के साथ सिराजगंज गये और वहाँ सरदारशहर के टीकमचन्द मुकनचन्द की फर्म पर नौकरी की। मगर आपका भाग्य आप पर मुसकरा रहा था और आपकी प्रतिभा आपको शीघ्रता के साथ उन्नति की ओर खींचे लिये जा रही थी, जिसके फल स्वरूप इस नौकरी को छोड़कर आपने संवत् १९५३ में बंगाल की मशहूर फर्म हरिसिंह निहालचन्द की सिराजगंज वाली शाखा पर सर्विस करली । यहीं से आपके भाग्य ने पलटा खोना प्रारम्भ किया। संवत् १९५८ तक भाप यहाँ पर रहे। तदन्तर इसी फर्म के हेड आफिस कलकत्ता में आप चले आये। आपके आने के पश्चात् इस प्रसिद्ध फर्म की और भी जोरों से तरकी होने लगी। आपकी तथा आपके भाइयों की कारगुजारी से मेसर्स हरिसिंह निहालचन्द के मालिक बहुत प्रसन रहते थे। इसके पश्चात् आपने डिवडिबी (रंगपुर) और भदंगामारी (रंगपुर) नामक जूट के केन्द्रों में भैरोंदान ईसरचन्द के नाम से अपनी स्वतन्त्र फर्म भी खोली और उनके द्वारा काफी द्रव्य उपार्जिन किया।
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