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ओसवाल जाति का इतिहास
दरबार में भरे सु हमें ई इणारी चौधर है ने मरजाद है जिण माफक राखियो कोजो ने कोई उजर खोट कर मरजाद मेटे तो आगे परवाना हुआ जीण मुजब कीजो श्री हुजूर रो हुकुम छै दूजा भादव, सुदी १३ संवत १८८...
मेघराजजी झाबक- रायसिंहजी के पुत्र मेघराजजी का जन्म संवत् १८८० में हुआ। आप सम्वत् १९०७ में बीकानेर में ड्डा अमरसीजी की फर्म के चीफ एजेण्ट नियुक्त हुए। कहना न होगा किडड्ढा खानदान इनका रिश्तेदार था और अमरसीजी इनके दादा उदयचन्दजी के भानजे थे। झाबक मेघराजजी के साथ सेठ अमरसी सुजारमल के मालिको का व्यवहार बड़ा प्रेमपूर्ण और प्रतिष्ठित था। साबक मेघराजजी सम्बत् १९१७ में इस खानदान की हैदराबाद वाली दुकान पर गये और अपने बड़े भाई सावक केशरीचन्दजी के मातहती में रहकर सब कारोबार करते रहे। आप साहुकारी लाइन में होशियार एवं अनभवी पुरुष थे। फलोदी की जनता में आप आदरणीय व्यक्ति माने जाते थे सं० १९२५ में आपका देहान्त हो गया। आपके बाधमलजी, बदनमलजी, नथमलजी और सुगनमलजी नामक चार पुत्र हुए। सं. १९१८ से ६५ तक इनकी एक दुकान “मेघराज बाघमल" के नाम से हैदराबाद में व्यापार करती रही।
झाब बाघमलजी-आपका जन्म संवत् १९०९ में हआ। आप समझदार एवं अमीराना तबियत के पुरुष थे। संवत् १९४१ में आपका स्वर्गवास हुआ। आपकी धर्मपत्नी ने आपके बाद जीवन भर प्रत्येक मास में ८ उपवास किये । और लगातार ३१, २५ दिनों तक भी कई उपवास किये । आपके कोई संतान नहीं थी। अतः आपने अपने यहाँ पर पर झाबक नथमलजी के बड़े पुत्र बच्छराजजी को दत्तक लिया।
भाबक बच्छराजजी-आपका जन्म १९३२ में एवं संवत् १९६८ में समाधि मरण हुआ। भापकी मद्रास में घरु दुकान होते हुए भी सेठ चांदमलजी ड्डा के आगृह से उनकी हैदराबाद दुकान के आप १० साल तक चीफ एजंट रहे। आप बुद्धिमान् एवं कार्य कुशल व्यक्ति थे। आपके पुत्र नेमीचन्दजी साबक का जन्म संवत् १९५३ में हुआ।
___ झाबक नमीचन्दजी-आप बड़े प्रभावशाली जाति सुधारक और सज्जन व्यक्ति हैं। सम्वत् १९८० से ३ तक फलौदी की जाति में जो सधार हुए उनमें आपका प्रधान हाथ था। मद्रास के चायना बाजार में आपकी ज्वेलरी और रडीमेड सिलवर की बड़ी प्रतिष्ठित और प्रमाणिक दुकान है। आपके पुत्र वजीरचन्दजी बड़े होनहार हैं। ये अभी बालक हैं । सेठ फूलचन्दजी झाबक के कोई संतान नहीं है, अतः उन्होंने अपने भतीजे सेठ नेमीचन्दजी एवं उनके पुत्र वजीरचन्दजी को अपनी सम्पत्ति का मालिक कायम किया है। श्रीयुत फूलचन्दजी साबक अच्छे प्रभावशाली व्यक्ति हैं। जैन समाज के बड़े २ आचार्यों एवं धनिकों से आपका बहुत परिचय है। आपके यहाँ एक मूल्यवान पुस्तकालय है। जिनमें लगभग ८०० ग्रन्थ हैं। इनमें कल्पसूत्र नामक ग्रन्थ ताड़ पत्र पर लिखा है और वह सम्बत् ११०० के लगभग का है। इसके अलावा ओल्ड चायना का भी आपके पास संग्रह है। आपके सुप्रयत्न से फलोदी में एक कन्या पाठशाला स्थापित हुई। इसी तरह हैदराबाद की जीवदया समिति में भी आपने प्रधान भाग लिया था। आप १९४५ तक हैदराबाद में मुख्त्यार की हैसियत से सेठ "अमरसी सुजानमल" फर्म पर काम करते रहे। बाद दो सालों तक सेठ चांदमलजी की सेवामें रहे । आपका विस्तृत परिचय नीचे दिया गया है।