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बोथरा
हम ऊपर बच्छावतों के इतिहास के बोथरा गौत्र की उत्पत्ति का विवरण प्रकाशित कर चुके हैं। इसी बोधरा गौत्र में से बच्छावत गौत्र की उत्पत्ति हुई है। यहाँ हम पाठकों की जानकारी के लिए बोथरा गौत्र पर ऐतिहासिक प्रकाश डालने वाली कुछ सामग्री पाने उनके कुछ शिलालेख प्रकाशित करते है। - पहला शिलालेख नागौर के दफ्तरियों के मोहल्ले में श्री आदिनाथजी के मन्दिर में लगा है।
दूसर शिलालेख बीकानेर के आसानियों के मोहल्ले में बांठियों के उपासरे के पास पंच तार्थियों पर श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी के मन्दिर में है। जिसकी नकल निन्न प्रकार है।
(1) संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने उपकेशवंशे बोथरा गौने शा. जेसा पु० थाहा सुश्रावरेण भा० सुहागदे पुत्र देल्हा मानी वाकि युतेन माता लखी पुण्यार्थ श्री श्रेयांस विम्ब करिते प्रतिष्ठित श्री खरतरगच्छे श्री जिनचन्द्रसूरि पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरि भिः
(२) संवत् १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने उकेश....."रा गौत्रे सा दूल्हा पुण्यार्थ पुत्र सा० अभयराज तद् मातृ ली....."पुतेन श्री नेमीनाथ बिम्बं का०प्र० श्री स्वरतरदच्छ श्री जिनभद्रसूरि पढे श्री जिनचन्द्र सूरिभिः- ॥श्री॥
उपरोक्त लेखों से पाठकों को उस समय के आचारय और बोथरा वंश के पुरुषों के नाम का पता चल जाता है। इसी प्रकार और भी कई शिलालेख इस वंश के मिलते हैं जो स्थानाभाव से यहाँ नहीं दिये गये। अब हम इस वंश के वर्तमान समय के प्रसिद्ध परिवारों का परिचय दे रहे हैं।
श्रीलालचंद अमानमल बोथरा गोगोलाव करीब २५० वर्ष पूर्व इस परिवार के पुरुष बीकानेर भाये। वहां वे ५० वर्ष तक रहे । पश्चात् फिर वहां से भग्गू में, जिसे बढ़ागांव भी कहते हैं, आये। इसके ०५ वर्ष वाद याने भाज से करीव १२५ वर्ष पूर्व गोगोलाघ नामक स्थान में आकर बसे, तबसे आप लोग वहीं रह रहे हैं। इस वंश वालों ने भग्णू में एक कुवा बनवाया था, जो आज भी बोथरा कुआ कहलाता है । खेमराजजी