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कांकरिया कांकरिया गौत्र की उत्पति
इस गौत्र की उत्पत्ति कंकरावत गाँव के निवासी परिवार राजपूत वंशीष खेमटरावजी के पुत्र राव भीमसीजी से हुई है । राव भीमसीजी उदयपुर महाराणाजी के नामांकित सामंत थे। भापको भरतर गच्छाचार्य श्री जिनवल्लभसूरिजी ने जैन धर्म का प्रतिवोष देकर दीक्षित किया तथा भाप करावत गाँव निवासी होने से कांकरिया के नाम से प्रसिब हुए। भाप लोग खरतरगच्छ के भनुवापी है।
मेहता जसरूपजी कांकरिया का खानदान, जोधपुर जोधपुर के कांकरिया खानदान के इतिहास में मेहता जसरूपजी का नाम विशेष उल्लेखनीय है। पोषपुर की गद्दी पर जिस समय महाराजा मानसिंहजी प्रतिष्ठित थे उस समय जोधपुर में नाथजी का प्रभाव बहुत जोरदार और व्यापक हो रहा था। यह कहना अत्युक्ति न होगी कि माथजी.
आँख के इशारे पर उस समय सारे राज्य की धुरी घूमती थी। महाराज मानसिंहजी नाथों के तत्कालीन गुरू देवनाथजी को करीब २ विधाता के ही तुल्य समझते थे। मेहता असल्पनी ही नामजी के कामदार थे। कहना न होगा कि इनका भी उस समय बड़ा म्यापक प्रभाव था।
संवत् १८४२ में मेहता जसरूपजी को दरवार की मोदी का काम सौंपा गया। संवत् १४९ में भापका राजनैतिक वातावरण में बहुत प्रभाव बढ़ गया। इस समय इन्होंने अपने कामेती (कामदार) कालूराम पंचोली को दीवान का पद दिलाया। इसी बात से उनके प्रभाव का अन्दाजा लगाया जा सकता है। संवत् १८९५ में आप के पुत्र बच्छराजजी को किलेदारी का पद मिला । इसी वर्ष ब्रिटिश गवर्नमेंट को यह ख़याल हुमा कि जोधपुर के शासन में नाथजी का दखल होने से सारी व्यवस्था गड़बड़ हो रही है। इसलिये उसने महाराजा पर नाथजी के कम दखल करने का दबाव डाला । इस अप.