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श्रीसवाल जाति का इतिहास
कई ठाकुर और सरदार थे। इस हमले में मेहता विजयसिंहजी ने कप्तान हार्डकैसल के साथ रह कर उर्फ डाकू को पकड़ने में सफलता प्राप्त की। इसकी खुशी में दरबार ने उनको एक खास रुक्का दिया और कसान ने भी एक पत्र द्वारा आपके चतुराई, दृढ़ता और साहस की प्रशंसा की ।
संवत् १९०४ में उक्त डाकुओं के हिमायती सीकर रावराजा के पुत्रों को दबाने के लिये आप एजंट के लेफ्टिनेण्ट के साथ गये, उसमें भी उक्त एजंट ने इनके साहस की बहुत प्रशंसा की । संवत १९०५ में दरबार मे प्रसन्न होकर इन्हें एक मोतियों की कंठी प्रदान की। इसी साल इनको दरबार ने एजंटी का वकील बनाया। इनके लिये जोधपुर का पोलिटिकिल एजंट लिखता है कि "ये एक ऐसे मनुष्य है जिनका निर्भय विश्वास किया जा सकता है इनके समान मारवाड़ी अफसरों में बहुत कम आदमी पाये जाते हैं।" उन्हीं दिनों इन्हें दरबार ने दीवानगी के काम पर कई सज्जनों के साथ में नियुक्त किया और एक सहस्र रुपये मासिक वेतन कर दिया । इनकी स्वामिभक्ति, सत्यता, वीरता आदि से दरबार इतने प्रसन्न हुए कि संवत् १९०८ में इन्हें दीवानगी प्रदान की। संवत् १९१३ की पौषसुदी ११ को दरवार ने आपको ३ गाँव प्रदान किये । संवत् १९१४ में मेहताजी ने अन्य मुत्सुद्दियों के साथ आउवे पर चढ़ाई की। इनकी सहायता के लिये बृटिश सेना भी आई थी। संवत् १९१६ में आसोप आलणियावास, गूलर और बाजुवास के बागी ठाकुरों पर चढ़ाई कर उन्हें दबाया । संवत् १९२० में जयपुर दरबार ने उन्हें हाथी सिरोपाव और पालकी का सिरोपाच दिया । संवत् १९२१ की माघसुदी ११ के दिन दरबार ने प्रसन्न होकर राजोद (नागोर ) नामक गाँव जागीर में दिया ।
मेहता विजयसिंहजी दरबार के ही कृपापात्र नही थे प्रत्युत पोलिटिकल एजंट और अन्य अंग्रेज सन् १८६५ की ४ जून
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सराहते रहे हैं बुद्धिमान और
आदर्श देशी सज्जन
आफीसर भी समय २ पर कई सार्टिफिकेट देकर उनकी योग्यता को को पोलिटिकल एजंट एफ० एफ० निक्सन लिखते हैं, कि "यह एक हैं, इन्हें मारवाद की पूरी जानकारी है, इत्यादि" ।
१० सितम्बर १८७१ को भूतपूर्व ऑफिशिटिंग पोलिटिकल "मैं मेहता विजयसिंहजी को बहुत भरसे से जानता हूँ"
एजंट जे० सी० "ये एक योग्य
हैं, मे उन थोड़े पुरुषों में से एक हैं जो राज्य के कार्य्य करने की योग्यता रखते हैं" ।
शुक लिखते हैं कि तथा फुर्तीले पुरुष
संवत् १९९८ में द्वितीय महाराजकुमार जोरावरसिंहजी ने खाटू, भागूंता तथा हरसोलाव के ठाकुरों की सलाह से नागोर पर कब्जा कर लिया। इसके लिये युबराज को समझाने के लिये फौज देकर मेहताजी भेजे गये । मेहताजी मे नागोर के किले पर घेरा डाला, इसी अरसे में स्वयं दरबार और पोलिडिकल एजेंट भी बहुत सी सेना लेकर पहुँच गये, और एजंट सहित कई मुसाहिवों मे कुमार को समझाया
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