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मंडारी
भीनमाल का भण्डारी खानदान (निम्बावत) भण्डारी दुरगादासजी के पुत्र भण्डारी जेठमजी, मानमब्जी और सरदारमलजी का परिचय हम अपर दे चुके हैं। भण्डारी सरदारमलजी १८८३ में भीनमाल के हाकिम हुए और ४ साल बाद तीनों भाई सांचोर, जालोर, तथा भीनमाल के हाकिम हुए तथा बहुत वर्षों तक इस पद पर काम करते रहे। इन भाइयों को १८९० में दरबारने सिरोपाव मोतियों की कण्ठी, कहा, दुशाला, खासा घोड़ा आदि के सन्मान बख्शे । मानमलजी ने सिरोही इलाके के बागी देवड़ा को परास्त कर गिरफ्तार किया । मानमलजी के पुत्र सुल्तानमहजी जालोर के कोतवाल थे। इन्होंने २२ परमों से रेख रकम वसूल करने का काम किया । सं० १९१० में आप नागोर की तरफ के परगनों के बागी भादमियों को दबाने के लिये गये । इस तरह कई मोहदों पर इस परिवार के व्यक्तियों में काम किया । इस दम्ब में इस समय भण्डारी सम्हराजजी, जसवन्तराजजी, नयमजी तथा दाममलजी विद्यमान हैं । सबहराजजी के पुत्र मनोहरमलनी किशोरमलजी तथा नथमकजी के पुत्र हस्तीमलजी सुकनमलजी जोधपुर तथा सिरोही कस्टम विभाग में सर्विस करते हैं। दानमब्जी के पुत्र मुनीलालजी सांवतमलजी तथा पृथ्वीराजमी है। सांवतमब्जी मिलनसार और सज्जन युवक हैं।
सेठ लालचन्द प्रेमराज (भंडारी) मूथा, अहमदनगर . .
लगभग ७५ साल पहिले भण्डारी मूथा पूनमचन्दजी पीपाड़ से अहमदनगर आये। भापने यहाँ नौकरी की। आपके पुत्र धनराजजी ने पूनमचन्द धनराज के नाम से कारबार शुरू किया। तथा म्यवसाय जमाकर सम्वत् १९५३ में आप स्वर्गवासी हुए । भापके पुत्र लालचन्दजी और मालमचन्दजी हुए। मण्डारी लालचन्दजी के हाथों से इस फर्म के म्यापार को मच्ची उन्नति मिली । आप कान्फ्रेंस और जाति के कामों में आगेवान रहते थे और जाति के सरपंच थे भापका अंत सं० १९६४ में हुआ । आपके पाठ वर्ष बाद थालचन्दजी और आपके पुत्र प्रेमराजजी अलग २ हो गये। भण्डारी मूथा प्रेमराजजी सार्वजनिक कामों में अच्छा सहयोग लेते हैं। आपके यहाँ लालचन्द प्रेमराज के नाम से कपड़े का व्यापार होता है। भाप स्थानकवासी भाम्राय के मानने वाले हैं।