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ओसवाल जाति का इतिहास
हो गये चौथे सेठ समीरमलजी के भी कोई सन्तान न होने से उन्होंने अपने छोटे भाई उदयमलजी को दत्तक लिया।
सेठ उदयमलजी-आपका जन्म संवत् १८८६ में हुआ। आपने भी अपने पूर्वजों के व्यापार और कीर्ति को अक्षुण्ण रक्खा। राज्य और प्रजा दोनों ही क्षेत्रों में आपका काफी सम्मान था। आपको राज्य की ओर से संवत् १९१६ में एक खास रुका इनायत हुआ जो इस प्रकार था
श्रीरामजी
(सही) रुक्को खास मेहता उदयमल दिसी सुप्रसाद बंचे उपरंच तनै वा थारे भाई ने पहले सुं हाथी वा पालकी वा छड़ी वा चपरास वा गुजरा वा छुट को गुजरा वा सिरे दरबार में बैठक वा पग में सोनो, वा सेठ पदवी रो खिताब वगैरह कुरब इनायत हुवोड़ो छे तमे वा थाहारी इज्जत आबरू में म्हें वा म्हारो पूत पोतो तेसु वा थाहारे पूत पोतो सुं कोई बात रो फरक न घालसी श्री लक्ष्मीनारायणजी बीच में छे म्हारो वचन छै और म्हारे पधारने में किताइक दिनरी देरी हुई तेसु रंज दिल माहे मती राखजे तू म्हारे घणी बात छे और किताइक समाचार रामेंने फरमाया छे सुं तने मुख जवानी केसी । संवत् १६१६ मिती पोह वदी ४
इससे पता चलता है कि राज्य में आपका कितना सम्मान था । आपके एक पुत्र सेठ चाँदमलजी हुए।
सेठ चान्दमलजी सी० आई० ई०
आपका जन्म संवत् १९२६ में हुआ। आप भी इस खानदान में बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति हुए। आपने प्रारम्भ में अपने व्यापार का विस्तार करने के उद्देश्य से मद्रास, कलकत्ता, सिलहट, मौर ( पंजाब ) इत्यादि स्थानों पर अपनी फमैं स्थापित की। इसके अतिरिक्त जावरा स्टेट के आप स्टेट बैक्कर भी हुए। देशी राजाओं और ब्रिटिश गवर्नमेंट में भी आपकी बड़ी इज्जत थी। भारत सरकार ने आपको सी. आई. ई० की सम्माननीय उपाधि से विभूषित किया था। निजाम स्टेट में भी आपका अच्छा सम्मान था । वहाँ पर आपको दरबार में कुरसी और चार घोड़ों की बग्गी में बैठने का सम्मान प्राप्त था। बीकानेर के देशनोक नामक स्थान पर आपने करणी माता के मन्दिर का प्रथम द्वार बनवाया । इस द्वार की कारीगरी और कोराई दर्शनीय है । इसके बनवाने में करीब ३॥ लाख रुपया खर्च हुआ । लार्ड मिण्टो तथा और कई लोग इस द्वार को देखने के लिए आये थे। संवत् १९५९ में एक दिन दरबार बीकानेर ने आपके यहाँ सेल आरोग
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