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श्रीसंभाल जाति का इतिहास
लालजी नामक तीन पुत्र हुए, इनमें जवाहरमलजी, आगनमलजी के नाम पर दत्तक गये। इन बन्धुओं के समय से यह परिवार अलग २ व्यापार कर रहा है ।
बाला हीरालालजी का परिवार छाला हीरालालजी संवत् १९५३ में स्वर्गवासी हुए । आपके चुन्नीलालजी, चम्पालालजी, मूलचन्दजी तथा फूलचन्दजी नामक ४ पुत्र हुए । लाला चुन्नीलालजी ने इस खानदान की दौलत और इज्जत को बहुत बढ़ाया। आपने लखनऊ से बैल गाड़ियों द्वारा आबूजी और गोड़वाद की पंचतीर्थी का संघ निकाला । आप जवाहरात के व्यापार में और चोरासी संघ के काम में अच्छे जानकार थे। इस प्रकार प्रतिष्ठा पूर्ण जीवन बिताते हुए आप संवत् १९७३ में स्वर्गवासी हुए । आपके छोटे भ्राता चम्पालालजी और फूलचन्दजी आपसे पहिले गुजर गये थे । सब से छोटे लाला मूलचन्दजी संवत् १९८० में स्वर्गवासी हुए। इनके फतेचन्दजी और अमीचन्दजी नामक २ पुत्र विद्यमान हैं । में हुआ 1 - लाला फतेचन्दजी का जन्म संवत् १९४८ और अमीचन्दजी का १९५० आप दोनों बुद्धिमान और सुवरे हुए विचारों के सज्जन हैं। आपके यहाँ जवाहरात तथा लेन-देन का व्यापार होता है । लखनऊ की ओसवाल समाज में तथा बौहरी समाज में यह परिवार पुराना और प्रतिष्ठित माना जाता है। लाला फतेचन्दजी के पुत्र नौरतनमलजी, धनपतराजजी और प्रतापचन्दजी तथा अमीचंदजी के पुत्र
अमोलकचन्दजी हैं।
लाला जवाहरमलजी के पुत्र मानकचन्दजी तथा नानकचन्दजी थे। इनमें मानकचन्दजी के नगीनचन्दजी, आनंदचन्दजी और केसरीचंदजी नामक ३ पुत्र हुए।
सेठ बसंतीलालजी नाहर का खानदान, रामपुरा
आप
इस परिवार के सज्जन बहुत वर्षों से इन्दौर राज्य के रामपुरा नामक नगर में रहते हैं । इस परिवार में माणानी बड़े नामाश्री जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी सम्प्रदाय को माननेवाले सज्जन हैं । कित व्यक्ति हुए । आप अफीम का व्यापार करते थे । आप सालमशाही रुपया परखना अच्छा जानते थे । आपकी परोपकार के कामों की तरफ भी काफी इच्छा रहती थी । आपने यहाँ पर एक बावड़ी भी बनवाई थी ।
आपके पश्चात् इस फर्म की दो शाखाएँ हो गईं जिनमें से एक शाखा मन्दसौर चली गई तथा दूसरी शाखा रामपुरा में विद्यमान है। नाहर माणाजी के वंश में आगे चलकर बहुतलालजी और बसंतीलालजी नामक दो भाई हुए ।
1. बहुत लालजी नाहर - आप बड़े व्यापार कुशल व्यक्ति थे। आपका स्वर्गवास हो गया है। आपके
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