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सबल है। आजकल बाप मी फर्म से अलग हो गये है तथा मापने छोटे भाई माणकचन्दजी के साथ व्यापार करते हैं। आपकी फर्म सरभोग में मेसर्स मागकचन्द तेजकरण के नाम से जूट, सरसों एवम् धान वाऔर गल्ले का तथा आदत का काम होता है। आपके तेजकरनजी मामक एक पुत्र हैं।
बा० माणकचन्दजी-आपला संवत् १९५३ में जन्म हुभा है। आप भी इस फर्म से अलग होकर भापने भाई पूनमचन्दजी के साझे में मपसाब करते हैं । आप भी मिलनसार सजाम हैं । आपके इस समय तीन पुत्र हैं जिनके नाम क्रममा जारीचन्दजी, शुभ करणजी एवम् विजयसिंहजी है।
बा० चम्पालालजी-आपका संवत् १९५८ में जम्म हुबा। आजकल भाप छापर में ही विपक्ष करते हैं। वहाँ पर चाप ब्याज का काम करते हैं।
ललवाणी ललवाणी गोत्र का उत्पत्ति
महाजन बंश मुकावली नामक ग्रंथ में सवाणी गौत्र की उत्पतिसमें लिया,लकत् 1९२ में रणथंभोर गढ़ में परमार राजा लालसिंहजी राज करते थे इनके पुत्र थे। इनमें से एक पुत्र महादेव को आलंधर का महाभयंकर रोग हुमा । तब राजा ने मुनि श्री जिनवडभसूरिजी से प्रार्थनाकी । मुनी ने ब्रह्मदेव को तंदुरुस्त किया। इससे प्रभावित होकर राजा लालसिंहजी ने अपने • पुत्रों सहित जैन धर्म अंगीकार किया । इस प्रकार उनके लालमणी पुत्र की संताने ललवाणी कहलाई।
.. ललवाणी खानदान, खानदेश
खानदेश के इस प्रतिष्ठित परिवार का मूल निवासस्थान बदल (जोधपुर स्टेट) है। बस में इस खानदान में सेठ मोटाजी ललवाणी हुए। इनके शोभाचन्दजी, ताराचन्दजी, 'तेजमानी और समरथमलनी नामक ४ पुत्रों का परिवार मारवाड़ और खानदेश के जामनेर, कलमसारा, मांडल, नांचनखेड़ा (शेदुर्णी ), चीलगाँव (शेंदुर्णी ), बोरद (भूलिया ) और नसीराबाद (भुसावक) मादि स्थानों में निवास करते हैं।
बलवानी मोटाजी के बड़े पुत्र शोमाचन्दजी का कुटुम्ब बदलू और चील गाँव में निवास करता है। इनके दूसरे पुत्र ताराचन्दजी थे। ललवानी ताराचन्दजी के पुत्ररतमलजी हुए और कीरतबलबी के पुत्र उसमन्दकी समा धनजी मारवाद से लगभग १२५ साल पहले जलगाँव के पास पिंपराल मा स्थान में भावे तथा वहाँ म्यवसाय शुरू किया। इनमें उत्साबादी के परिवार में इस समाधी