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लणिया
पद पर कार्य करते रहे। कुछ समय पश्चात् आपने हिन्दी साहित्य मन्दिर के नाम से पुस्तक प्रकाशन का
कार्य किया, तथा मालव मयूर नामक एक मासिक पत्र निकाला । इसके पश्चात् आप अपने - ऑफिस को बनारस लेगये, और वहाँ राष्ट्रीय एवम् शिक्षाप्रद ग्रन्थों का प्रकाशन बहुत जोरों से भारम्भ किया । सब मिलाकर भापने ३५ पुस्तके प्रकाशित की । इसके पश्चात् देश सेवा की उन्नत भावनाओं से प्रेरित होकर भाप अजमेर चले आये' तथा अपना निजी प्रकाशन बंद कर के सार्वजनिक क्षेत्र में भाग लेने लगे। आपने अपने कई मित्रों के और घनश्यामदासजी विडला व जमनालाल जी बजाज के सहयोग से अजमेर में “सस्ता साहित्य मण्डल" नामक प्रसिद्ध संस्था स्थापित की और इसी संस्था के द्वारा आपने अपने पत्र "मालव मयूर" का नाम बदल कर "त्यागभूमि" के रूप में प्रकाशित करना आरम्भ किया। केवल निर्वाह के योग्य रकम लेकर आपने निस्वार्थ भाव से इस संस्था की बहुत सेवा की। सन् १९५० में स्वास्थ्य ठीक न रहने से आपने उससे त्याग पत्र दे दिया । सन् १९३१ में आपने "भजमेर सेवा भवन" नामक एक संस्था स्थापित की तथा इस संस्था के द्वारा एक सार्वजनिक वाचनालय भौर एक रात्रि पाठशाला स्थापित की। यह दोनों संस्थाएं भभी तक सुम्यवस्थित रूप से चल रही हैं। सन् १९३० में भाप अजमेर कांग्रेस कमेटी के डिक्टेटर बनाये गये जिसमें आपको ६ मास की कठोर कारावास की सजा मिली । इसके पश्चात् सन् १९३२ में स्वयं सेवकों के साथ जत्था लेकर देहली जाते हुए अजमेर स्टेशन पर आप गिरफ्तार किये गये, इस बार आपको तीन मास की सजा हुई । आपकी धर्म पत्नी श्रीमती सरदार बाई लूणिया भी अपने पति के देश हित के कामों में तन मन से सहयोग देती हैं । आप बड़ी देशभक्त महिला हैं। सन् १९३३ के अगस्त मास में आप ८ बहिनों और ५ भाइयों के साथ राष्ट्रीय गान गाती हुई निकली तथा घण्टाघर अजमेर के पास गिरफ्तार करली गई। मजिस्ट्रेट ने आपको ३ मास की सजा देकर ए० क्लास में रखना चाहा, परन्तु भापकी कुछ साथी बहिनों को सी० क्लास दिया गया था, अतएव आपने भी ए० क्लास स्वीकार नहीं किया। इनके साथ २ इनके तीन वर्षीय पुत्र कुँवर प्रतापसिंह भी गये थे। हाल ही में लूणिया जीतमलजी ने "सस्ता मण्डल" का प्रेस खरीद कर उसे "भादर्श प्रिंटिंग प्रेस" के नाम से अजमेर में चालू किया है। यह बड़ा व्यवस्थित प्रेस है तथा सफलता के साथ अपना कार्य कर रहा है। आप के भतीजे नथमलजी लूणिया (धनरूपमलजी के पुत्र ) मोटर सर्विस का बिजीनेस करते हैं। माप उत्साही युवक हैं। भापके फतेसिंह तथा रणजीतसिंहजी नामक दो पुत्र हैं। लूणिया तिलोकचंदजी का परिवार
हम अपर लिख आये हैं कि लूणिया तिलोकचन्दजी फलोदी से बडू (मारवाड़) गये, तथा वहाँ से व्यापार के निमित्त संवत् १८५० में एक लोटा डोर लेकर गवालियर पहुंचे, और वहाँ कारबार करने