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बंदामेहता
हाथी, पालकी सिरोपाव, बैठने का कुरुख और सोना इनायत हुभा था। भापके मकुन्दचंदजी, लालचंदजी, समरथमलजी और कुंदनमलजी नामक चार पुत्र हुए।
मेहता मुकुन्दचन्दजी-सम्वत १९०० में मेहता लक्ष्मीचंदजी म स्वर्गवास होने पर आप दीवान बनाये गये। इसके पश्चात् फिर सम्बत् १९०९, १९१६ .और १९४९ में आप दीवान बने कुल सात वर्षों तक आपने दीवानगी की। आपको भी हाथी और पालकी, सिरोपाव, बैठक दावा बन्द तथा पैरों में सोने की साँटों का सम्मान प्राप्त हुआ। महाराजा साहब तीन बार आपकी हवेली पर पधारे । संवेत् १९१७ में आपने अपने भाइयों के साथ श्री पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया। उसके पश्चात दरबार के हुक्म से उसमें गोपीननाथ और माता के मन्दिर बनवाये । संवत १९२४ में आपका देहान्त हुआ। आपके पूनमचंदजी और किशनचंदजी नामक दो पुत्र हुए। इनमें किशनचंदजी मेहता लालचंदजी के नाम पर दत्तक गये ।
मेहता कुन्दनमलजी-मेहता कुन्दनमलजी का जन्म संवत् १८९६ में हुमा। राजकुमार जसवन्तसिंहजी की नाबालिगी के समय इन्होंने बड़ी इमानदारी से राज काज सम्हाला । संवत् १९९३ में भाप महाराजा सखतसिंहजी के साथ आगरा के दरबार में गये वहाँ आपको सिरोपाव मिला। उसके पश्चात् माप कई स्थानों के हाकिम हुए तथा और कई भिन्न २ पदों पर रहे। १९३८ में आपको हाथी और पालकी सिरोपाव और पैरों में सोना इनायत हुआ। संवत् १९३८ के श्रावण में भयंकर पुष्टि की बजह से महाराजा साहब एक मास तक आपकी हवेली में जनाने समेत रहे। यहीं महाराजा ने इन्हें पैरों में सोना और ताजीम देना चाहा । मगर इन्होंने स्वीकार न किया, तब महाराणी साहब ने कुन्दनमलजी की दोनों पत्नियों को सोना इनायत किया। मेहता कुन्दनमलजी को शिल्प और संगीत से बड़ा प्रेम था। संवत् १९३. के अकाल में मापने २ साल का इकट्ठा किया हुआ अनाज गरीबों को मुफ्त बांट दिया। सम्वत् १९३५ में मापने सबसे पहिले तौजी की प्रथा प्रचलित की। संवत् १९५६ में मापने भोसियाँ का मीर्णोद्धार करवाया। सं० १९४१ में आपका देहान्त हुमा। आपके सन्तान न होनेसे आपके नाम पर मेहता चांदमलजी दत्तक लिये गये।
___ मेहता पूनमचन्दजी-आप मेहता मुकन्दचन्दजी के पुत्र है आपका जन्म सं० १९०९ में हुआ। कुछ समय तक हाकिम के पद पर रहकर आप सरकारी दुकानों (स्टेट बैंक) के पदाधिकारी नियुक्त हुए। इसके पश्चात् और भी कई महत्त्व पूर्ण पदों पर काम करते हुए आप एरनपुरा के वकील नियुक्त हुए । आपके पिता मुकुन्दचन्दजी का स्वर्गवास होने पर दरबार मातम पुर्सी के लिये भापके यहाँ पधारे, और उनके सब करव भापको इनायत किये। उनके मौसर के समय भी दरबार ने सात हजार रुपये नगद और पालकी