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सेठ लालचन्द जीतमल, ललवाणी-धूलिया
इसी तरह मोटाजी सेठ के चतुर्थ पुत्र समरथमब्जी के पुत्र जीतमकाजी हुए। भाप ...साळ पहिले धूलिया जूनियाँ नामक स्थान में बाये। आपके दगडूजी, गुलाबचंदजी, बालचंदजी, मसीचंदजी बसखारामजी नामक ५ पुत्र हुए। सेठ जी जन्म १९६० में हुना। भाप नियों से बोल गये, तथा इस समय सिरूर (पुलिया के पास) में व्यापार करते हैं। पुलिया में भी । साय पहिले इन्होंने दुकान की है आपके यहाँ किराने का व्यापार होता है। आपके भागचंदजी, लोभाचंदजी, कपूरचंदजी वया छगनमलजी नामक । पुत्र विषमान है। इसी तरह दगडुजी एडवाणी के पुत्र दीपचन्दजी बोरड़ में व्यापार करते हैं। सालीचन्दजी के पुत्र परचन्दजी भी व्यापार करते हैं।
• सलवाणी जीवणचन्दजी का खानदान, बोधपुर इस परिवार के पूर्वज वाणी जगनाथजी के नगराजजी और असामाची नामक दो पुत्र हुए। हनने नगराजजीम परिवार इस समय पचपदरा में है।
बलवाणी कुशालचन्दजी-भापको प्रसन्न होकर जोधपुर दरबार में "भार" की पदवी वापस की थी। तब से भापका परिवार "शाह" के नाम से सम्बोधित होता है। आपके पुत्र अमरचन्दजी तथा माणकचन्दजी ललवाणी हुए।
___ ललवाणी अमरचन्दजी-आप जोधपुर महाराजा मानसिंहजी के विश्वासपात्र ओहदेदारों में थे। अब महाराजा भीवसिंहजी गुजर गये, सब महाराजा मानसिंहजी को वापस लाने के लिये भाप जालोर मेजे गये थे। उस समय इनको महाराजा मानसिंहजी ने एक खास रुका दिया, जिसमें लिखा था कि...... "तथा थारी बंदगी सदाई सामघरमी री है हमें मारी बंदगी में हाजर हुवो सुथारी भाजीविका खिदमत में माराराज में दूर न हुसी । तो हुँ सदा मेहरवानी रासी मारो श्री हरदेव बिचे है ने सुव निजर सवायो नीवाजस हुसी : सुतो नीजर भावसी खातर खुसी राखे मे परबतसर री हाकमी में अपनतो. दोष हजार रो गाँव इनायत हुसी। काती सुदी ५ संवत् १..।
___ जब महाराजा मानसिंहजी जोधपुर की गद्दी पर बैठे, उस समय उन्होंने परवतसर, तोसीणा, बवाल वगैरा परगनों का हाकिम आपको बनाया और धोरू नामक २ हजार की रेख का गाँव जागीर में दिया। इसके बाद ये गाँव जस होकर भापको। हजार रुपया साख्यिाना मिलते हैं। भापके पुत्र चतुरभुजजी को भी संवत् १८६० में एक खास रुका इनायत हुआ।
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