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सुराणा कुंवर कर्मचन्दजी का संवत् १९७५ में स्वर्गवास होगया। भापकी एक पुत्री विवाह होने से कुछ समय बाद ही इस संसार को अनित्य जानकर वैराग्य भाव उत्पन्न होने पर अपने पति और परिवारवालों को छोड़कर सादी होगई हैं।
सेठ श्रीचन्दजी-आप सेठ प्रकरणजी के ज्येष्ठ पुत्र हैं। आपका जन्म संवत् १९३८ में हुआ। आप चुरू म्युनिसिपल बोर्ड के मेम्बर हैं। आप बहुत मिलनसार और उदार है। आरके एक पुत्र और एक पुत्री है। भाजकल भाप "तेजपाल वृद्धिचंद" फर्म के संचालकों में अग्रगण्य हैं।
सेठ शुमकरणजी-भाप सेठ तोलारामजी के दत्तक पुत्र हैं। भाप शिक्षित एवं सरलचित हैं। आजकल "सुराना पुस्तकालय" का संचालन आप ही करते हैं। मापने इस पुस्तकालय की और भी उन्नति की है। इस पुस्तकालय की बिल्डिङ्ग बहुत सुन्दर बनी हुई है। जिसका चित्र इस ग्रंथ में दिया गया है। भापका राज्य में और यहाँ के समाज में अच्छा सम्मान है। कई वर्षों तक भाप म्युनिसिपक बोर्ड पुरू मेम्बर, अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की प्रबन्ध कारिणी स्कूल कमेटी के मेम्बर, मजहबी खैराती और धर्माद के एक्ट की प्रबन्ध कारिणी कमेटी के मेम्बर, हाई कोर्ट बीकानेर के जूरर भौर चुरू के भानरेरी मजिस्ट्रेट रहे। श्री ऋषिकुल ब्रह्मचर्याश्रम घुरू के प्रधान मन्त्री और श्री सर्व हितकारिणी सभा पुरू के उपसभापति भी रहे। श्री जैनश्वेताम्बर तेरा पंथी सभा कलकत्ता के आप सहकारी मंत्री है। और कलकत्ता यूनिवर्सिटी इन्स्टीट्यूट के आप सीनियर मेम्बर है। सन् १९१८--२९ ई. में आप बीकानेर लेजिस्लेटिव एसेम्बली के मेम्बर रहे। आपका जन्म विक्रमी संवत् १९५३ मिती श्रावण शुक्ला ५ गुरुवार को चुरू नगर में हुआ। आपका प्रथम विवाह संवत् १९६७ मिती वैशाख शुक्ला ३ को सरदार शहर निवासी सेठ पूर्णचन्दजी भणसाली की पुत्री से हुआ था। आपका विवाह होने से १४ वर्ष के पश्चात् आपके भंवर हरिसिंह नामक एक पुत्र हुए।
स्व० मंवर हरिसिंहजी-मवर हरिसिंह सेठ शुभकरणजी सुराणा के इकलौते पुत्र थे । इनका जन्म संवत् १९८१ की कार्तिक कृष्ण ९ को हुआ था। चूंकि इस सम्पन्न घर में १२ वर्ष के पीछे पुत्रोत्पत्ति हुई थी इसलिए इनके जन्मोत्सव के समय बहुत उत्सव किया गया था। बालक हरिसिंह बहुत होनहार और प्रतिभा सम्पन्न थे । लक्षणों से ऐसा मालूम होता था कि अगर यह बालक पूरी आयु को पाता तो इस कुल का दीपक होता । मगर दुर्भाग्यवश माता का दूध न मिलने से या और कारणों से यह आजन्म रुग्णावस्था ही में रहा । ऐसी स्थिति में भी इस प्रतिभापूर्ण बालक में अपने खानदान की वीरता, उदारता और कई ऐसी दिव्य बातें पाई जाती थीं जो इसके उज्ज्वल भविष्य की ओर स्पष्ट रूप से इशारा कर रही थीं। इनमें इस छोटी अवस्था में ही शस्त्रास्त्रों के संग्रह की बहुत बड़ी अभिरुचि पाई जाती थी। हाथी, घोड़ा,