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पोसवाल जाति का इतिहास हैं। कलकत्ता फर्म पर एक्सपोर्ट इम्पोर्ट व्यापार किया जाता है। वहाँ वार कर "Zophyr" है। भाकिस का पता ३० काटन स्ट्रीट है।
यह परिवार रतनगद ही में नहीं प्रत्युत सारी बीकानेर स्टेट में प्रतिष्ठित माना जाता है। इस परिवार के लोग श्री जैन श्वेताम्बर तेरा पंथी संप्रदाय के मानने वाले हैं।
वेद परिवार, चूरू कहा जाता है कि इस परिवार के पूर्व पुरुष जब कि बोकाजी ने बीकानेर बसाया था, उनके साथ थे। यहाँ से वे फतेहपुर के नवाब के यहाँ चले गये। जब वहाँ नवाब से अनबन हो गई तब फतेहपुर को छोड़ कर गोपालपुरा नामक स्थान पर आकर बस गये। उस समय गोपालपुरा पर इनका और वहाँ के ठाकुर का आधा २ कब्जा था। महसूल की रकम माप दोनों ही व्यक्तियों की ओर से इकट्ठी की जाती थी। ऐसा भी कहा जाता है कि आप दोनों ही की भोर से एक २ आदमी बीकानेर दरबार की चाकरी में रहता था। इन्ही के वंशमें मेहता तेजसिंहजी हुए। ये बड़े पराक्रमी पुरुष थे। इन्होंने अपने नीवन में बहुत सी लड़ाइयाँ लड़ी और उनमें सफलता प्राप्त की। इनकी बहादुरी के लिये थली प्रांत में निम्म कहावत प्रचलित है।
"तपियो मुहतो तेजसिंह और मारिया सत्तरखान" मेहता तेजसिंहजी के पश्चात् कीरतमलजी हुए। आपने राज्य में काम करना बन्द कर दिया और महाजनी का काम प्रारम्भ किया। इनके तीन पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः लखमीचन्दजी, जोधराजजी और उदयचन्दजी था। आप तीनों ही भाइयों ने संवत् १९१४ में कलकत्ते में उदयचन्द पन्नालाल के नाम से अपनी फर्म स्थापित की। इसमें माप लोगों को अच्छी सफलता मिली। सेठ पन्नालालजी जोधराजजी के पुत्र थे । आपलोग गोपालपुरा से रामगढ़ मा गये। उदयचन्दजी के पुत्र हजारीमलजी हुए।
आप रामगढ़ रहे और पनालालजी चुरू चले गये। जिस समय भाप सुरू गबे उस समय दरबार ने आपको जगात के महसूल की माफी का परवाना इनायत किया।
उदयचन्दजी के पुत्र हजारीमलजी इस समय विद्यमान हैं। आपके दुलिचन्दजी नामक एक पुत्र है। पन्नालालजी के सागरमलजी और जवरीमलजी नामक दो पुत्र हुए। आप दोनों भाई अलग हो गये एवम् स्वतन्त्ररूप से व्यापार करते हैं।
सेठ सागरमलजी के धनराजजी और हनुतमलजी नामक दो पुत्र है। आजकल माप दोनों भाई