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बापना
इस विशाल संघ ने मार्ग में स्थान २ पर कई क्षेत्रों में बहुत सा धन लगाया, लथा कई स्थानों पर रथयात्रा के महोत्सव करवाये। बड़े बड़े तीर्थों पर मुकुट, कुण्डल, हार, कंठी, भुजबन्द इत्यादि आभूषण
और नगदी रुपये चदाये। कई स्थानों पर बड़े बड़े भोज किये और लहाणे बांटो । कई पुराने मन्दिरों के जीर्णोद्धार करवाये । उसके पश्चात् जब बापिस भाये तब जैसलमेर के रावलजी जनाने समेत भापकी हवेली पर पधारे । वहां पर आपने रुपयों का-चौंतरा किया। और सिरपेच, मोतियों की कण्ठी, कडे, दुकाले, हाथी, घोड़ा और पालकी रावलजी के नजर किये। प्रशस्ति में यह भी उल्लेख है कि भापकी हवेलियों पर उदयपुर के महाराणाजी, कोटा के महारावजी तथा बीकानेर, किशनगद, बून्दी और इन्दौर के महाराजा भी पधारे थे।
इसके अतिरिक्त इस प्रशस्ति से यह भी मालम होता है कि इस परिवार ने भी धूलेवाजी के मन्दिर पर नौवतखाना किया और गहना चढ़ाया, जिसमें करीब एक लाख रुपया लगा । ममीजी के मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया, उदयपुर ओर कोटा में मन्दिर, छत्री और धर्मशाला बनवाई । तथा जैसल. मेर में अमरसागर का सुरम्य उद्यान बनवाया।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट मालूम होता है कि धार्मिक, व्यापारिक और राजनैतिक क्षेत्रों में इस परिवार के महान व्यक्तियों ने कितनी महान् कार्यशीलता दिखलाई ।
सेठ बहादुरमलजी और मगनीरामजी का परिवार ..हम ऊपर लिख आये हैं कि सेठ गुमानमलजी बापना के पाँच पुत्रों में सबसे बड़े सेठ बहादुरमलजी थे । इन्होंने अपने व्यापार की प्रधान कोठी कोटा में स्थापित की थी। सेठ बहादुरमलजी बड़े बुद्धिमान और दूरदर्शी व्यक्ति थे। इन्होंने शुरू शुरू में कुनाड़ी ठिकाना, बूंदी राज्य और कोटा में छोटे स्केल पर व्यापार प्रारम्भ कर क्रमशः लाखों रुपये की सम्पत्ति उपार्जित की, और धीरे धीरे आपने तथा भापके भाइयों ने सारे भारत में करीब चारसौ दुकानें स्थापित की, जिनका उल्लेख हम ऊपर कर आये हैं। सेठ बहादुरमल जी का कोटा रियासत के राजकीय वातावरण में बहुत अच्छा प्रभाव था। रियासत से आपकी काफी घनिष्टता होगई थी और लेनदेन का व्यापार भी चालू हो गया था। कई बार तो रियासत की तरफ आपके
* उस समय में राजस्थानी रियासतों में चौंतरे का बहुत रिवाज था । मेंट करने वाले की जितनी हैसियत होती उसके अनुसार रुपयों का चौतरा बनवा कर वह महाराजा को इस पर विठाता और फिर ये रुपये नजर कर देता था ।