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खोढ़ा सेठ सनचन्दजी का जन्म संवत् १९४० में हुआ। आपके बड़े भ्राता मुलतानमलजी ने इस दुकान के व्यापार और सम्मान को विशेष बढ़ाया। माप आस पास की ओसवाल समाज में सम्माननीय यक्ति थे। आप संवत् १९८७ में स्वर्गवासी हुए। आपके पुत्र मोतीलालजी और गणेशमलजी हैं। हीराचन्दजी के नाम पर ताराचन्दजी दत्तक लिये गये हैं। सेठ रतनचन्दजी भास पास की भोसवाल समाज में अच्छी इज्जत रखते हैं। आपके यहाँ मुलतानचन्द अमोलकचन्द के नाम से लेन देन और कृषि कार्य होता है। आप तेरापंथी आनाय के मानने वाले सज्जन हैं। आपके पुत्र दीपचन्दजी, मोहनलालजी और
सुखलालजी हैं।
इसी तरह चांदमलजी के यहाँ चांदमल रामसुख के नाम से व्यापार होता है। आपके पुत्र देवीचन्दजी, लक्ष्मीचन्दजी, किशनदासजी, चम्पालालजी तथा दुलीचन्दजी हैं।
सेठ जेठमल जोगराज लोढा, त्रिचनापल्ली इस परिवार का मूल निवास फलोदी (जोधपुर स्टेट ) में है। आप मन्दिर मार्गीय भानाय के मानने वाले सजन है। इस परिवार के पूर्वज सेठ अखेचन्दजी के पुत्र प्रेमराजजी थे। इनके मोतीलालजी और देवीचन्दजी नामक दो पुत्र हुए। सेठ देवीचन्दजी लोदा फलोदी में रहते थे। वहीं से कलकत्ते के साथ अफीम की पेटियों के वायदे का धंधा करते थे। संवत् १९६४ में आपका स्वर्गवास हुआ । आपके जेठमलजी, भगरचंदजी और जोगराजजी नामक तीन पुत्र हुए। जेठमलजी का संवत् १९५४ में स्वर्गवास हुआ। भापकी धर्मपत्नी ने दीक्षा ग्रहण की।
देश से व्यापार के लिये सेठ जोगराजजा लोदा सम्बत् १९८० में त्रिचनापल्ली आये और आपने अगरचन्द साहूकार के नाम से गिरवी का व्यापार भारम्भ किया। आप बड़े मिलनसार और सरल स्वभाव के सजन हैं। आपकी बड़ी बहन श्री सोनीबाई ने सम्वत् १९५५ में मुनि सुखसागरजी महाराज के समुदाय में दीक्षा ग्रहण की । इनका नाम सौभाग्यश्रीजी था। सम्बत् १९७५ में इनका स्वर्गवास हो गया।
सम्वत् १९८३ में सेठ अगरचन्दजी का स्वर्गवास हो गया । अतः जोगराजजी ने उनका भाग निकालकर अपने नाम से धन्धा चालू किया। जेठमलजी के कोई सन्तान नहीं थी, अतएव उनके उत्तराधिकारी आप ही हुए । आप इस समय त्रिचनापल्ली पांजरापोल के प्रेसिडेण्ट हैं। सेठ अगरचन्दजी के पुत्र उम्मेदमलजी और बालचन्दजी फलोदी में पढ़ते हैं। आपके यहाँ फलोदी में हुंडी चिट्ठी का काम होता है। '. राय साहब लाला टेकचंदजी का खानदान, जंडियाला गुरु
इस खानदान के लोग श्री जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी भाम्नाय के हैं। आप लोग मूल निवासी अजमेर के हैं। वहाँ से भाप लोग पंजाब के कसेल नामक गांव में भाकर बस गये। वहाँ पर इस