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संवत् 100९ में महाराजा ने भण्डारी विसीमीको इसरिये दिली भेजा कि वह पादबाह को समझा बुझा र नवाव हसनभलीखों को कैद से छुड़वा देवे। यह इसनमकीला सैयद पन्धुणों में से था जिसने फरूखशियर को बादशाह बनाया था और बाद में उसे मरवा भी दिया था। महाराजा अजित. सिंहबी इसे भपना मित्र मानते थे। भण्डारी वसीजी दिल्ली पहुंचे। वहाँ पहले पहरू जयपुर मरेक जयसिंहजी से मापकी मुलाकात हुई। जवसिंहजी ने मापसे कहा कि हसनअलीसा का छूटना सब रटियों से हानिकारक है। फिर भण्डारी बीवसीजी नाहरकों से मिले और उन्होंने उसके हाथ महाराजा का संदेश बादशाह के पास पहुंचाया। नाहरकों ने बारमाह से कर उकटी बात कह दी कि जबतक इसनभाणीखाँ जिन्दा हैं सबतक महाराजा अजितसिंहजी दिल्ली नहीं आवेंगे। इस पर इसनमलीला मरवा दिया गया इसके बाद भण्डारी बीवसींजी और माहरला साम्भर भावे जहाँ महाराजा का मुकाम था। महाराज खींवसीजी पर बहुत नाराज हुए और कहा कि हमने तो तुम्हें इसनमकीलों को बचाने के लिये भेजा था, सुमने उक्या उसे मरवा दिया। इस पर खींवसीजी महा कि मैंने ले भाप का सन्देश नाहरणों द्वारा बादशाह के पास भेजा था पर नाहर बादशाह से उल्टी बात कही । इसपर महाराजा नाहरलॉोमरवाने का हुक्म दिया। यह बात भण्डारीबसीबीडीजी बहाना बना कर जोधपुर चले गये और महाराजा के आदमियों ने नाहरका के डेरे पर हमला कर उसे मारना ।
___ जब यह खबर बादशाह महम्मदशाह के पास पहुंची तो वह बड़ा क्रोधित हुा । उसने गुजरात मसूबा महाराजा से छीन कर हैदरअलीखों को भऔर अजमेर का सूबा मुजफ्फरनलीखाँ को दे दिया। पर महाराजा मजितसिंहजी का बड़ा दबदबा था, अतएव मुजफ्फरभलीलों की हिम्मत अजमेर पाने की न हुई। इसलिबे बादशाह ने हैदरअलीखों को अजमेर पर जाने की आज्ञा दी और तदनुसार यह अजमेर पर चढ़ मावा इसके बाद भण्डारी खींवसी और भण्डारी खुनाय के प्रयनों से मापस में सम्धि हो गई। कुछ समय पश्चात् भण्डारी खींवसीजी विद्रोही सरदारों को मनाने के लिये मेड़ते भेजे गये ।वहीं सम्बत् १.४१ केजी वदी ६ को भण्डारी नींवसीजी का स्वर्गवास हुमा।।
जब भण्डारी खींवसीजी का देहान्त हुना तब तत्कालीन जोधपुर नरेश महाराजा पतसिंहजी * दिल्ली में थे। आप भण्डारी खींवसीजी की मृत्युका समाचार सुनकर बडे दुरसित हुए । भाप दिल्ली में भण्डारी बीवसीजी के छोटे पुत्र भण्डारी अमरसीजी के डेरे पर मातमपुरसी के लिये पधारे और
• सम्बत् १७८० की भषाद सुदी १३ को महाराजा अमितसिंहजी का स्वर्गवास हो गया था। मापके बाद महाराजा बख्तसिंहबी जोधपुर के राजसिंहासन पर बैठे।