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सिंघवी
सिंघवी समरथमलजी की चतुरता से प्रसन्न होकर सन् १९०१ मै दरवार इनकी हवेली पर पधारे और एक परवाना दिया कि-"ये रियासतरा शुभचिन्तक परम में रया जणी सु याने सोना रो कुरुब इनामत करवा में आयो है सो थारी हयाती तक पात्या आवसी।".
.. संवत् १९४३ को चेत वदी ३ को दरवार ने इन्हें कुए के लिये जमीन बरुशी इस प्रकार प्रतिष्ठा पूर्ण जीवन बिताते हुए संवत् ११३ की तुदीको इनका स्वर्गवास हुमा । इनके पुत्र माणकचंदजी तथा चंदनमाजी विद्यमान है। सिंघवी माणकदमी का जन्म संवत् १९३३ में हुमा । अपने पिताजी के गुजरने पर ८ सालों तक भाप मेलास भाकिसर रहे भापके पुत्र सरदारमलजी तथा चंदनमलजी है। ..
...... सिंघवी सुखमलोत परिवार, जोधपुर ।
सिंघवी सोनपालजी तथा उनके पुत्र सिंहाजी और पौत्र पारसजी का परिचय पर सिंघवी गौरी उत्पत्ति में दिया जा चुका है। पारसजी के पुत्र पदमाजीं और के पुत्र परमानन्दजी हुये।
सिंघवी शोभानन्दजी-इनको सम्बत् १९४७ में महाराजा उदपसिंहजी के समय में पीवाणी का सम्मान मिला। १६९८ में जब मारवाड़ का परगने वार का काम बाँटा गया तब उसमें जोधपुर परगने पर सिंघवी शोभाचन्दजी मुकर्रर किये गये। इन्होंने अपने भाइयों के साथ सिदियों के मुहल्ले में श्री जागोड़ी पाश्र्वनाथजी का मन्दिर बनवाया। ये सम्बत् १६७० में मांडल (मेवाद) के झगड़े में महा. राजा सूरसिंहजी की बख्शीगिरी में उनके साथ गवे । तथा वहाँ मारे गये। आपके सुखमलजी, राबमलजी, रिदमलजी तथा परतापमलनी नामक १ पुत्र हुए।
सिंघवी सुखमलजी-जब सम्बत् १६०८ में जोधपुर पर शाहजादा खुर्रम चढ़कर भाया और कहर में बड़ी गड़बड़ी मची। उस समय दरबार ने राठौड़ लाना जीवावर बौर सुखमलजी को जोधपुर की रक्षा के लिए रखा और भण्डारी लूणाजी को फ़ौज के सामने मेगा । सम्बत् १९९० में महाराजा गजसिजी ने इन्हें दीवानगी का सम्मान बख्शा। इस ओहदे पर आपने सम्बत् १६९७ की पौष बदी ५ तक बढ़ी योग्यता से कार्य किया, आपको दरबार ने बैठने का कुरुष और हाँसक की माफी दी इन्होंने सम्बत् १६९९ में मेड़ता के फलोदी-पार्श्वनाथजी के मन्दिर की मरम्मत कराई। तथा कोट, बाग़ और कुँआ ठीक करवाया। इनके पुत्र सिंघवी पृथ्वीमस्त्री हुए।
सिंघवी पृथ्वीमलजी को अपने पिताजी के सब कुरव प्राप्त थे, महाराजा जसवंतसिंहजी के समय,