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सिंघवी
से दुबान गुडीपाड़ा ( मद्रास ) ले आये। गुहीवादा आने के बाद इस दुकान पर तांतेड़ ताराचन्दजी के पुत्र मंछालालजी का भाग सम्मिलित हुभा, आप सिरोही पाढीप नामक ग्राम के निवासी हैं। गुड़ीवाड़ा आने के बाद इस दुकान ने अच्छी तरक्की व इजत पाई। सेठ मंछालालजी तांतेड़ ने गुढीवाड़ा में जैन मंदिर के बनवाने में और अमीजरा पार्श्वनाथजी की प्रतिमा के उद्धार और प्रतिष्ठा में आस पास के जैन संघ की सहायता से बहुत परिश्रम उठाया । मंछालालजी विचारवान व्यक्ति हैं।
__सेठ छोगमलजी तथा वरदीचंदजी मौजूद हैं। छोगमलजी के पुत्र जेठमलजी, तथा वरदीचन्दजी के बभूतमलजी वस्तीमलजी, जीवराजजी तथा शांतिलालजी हैं। आप लोगों के यहाँ कपड़े तथा म्याज का काम होता है। इस दुकान के भागीदार सेठ प्रागचंद कपूरजी तथा भूरमल केसरजी हैं ।
सेठ मानकचन्द गुलजारीमल सिंघवी देहली यह खानदान जैन स्थानकवासो मानाय का माननेवाला है, और लगभग १०० सालों से देहली में निवास कर रहा है। इस खानदान में लाल वस्तावस्मलजी सिंघवी हुए, भापके लाला शादीरामजी, लाजा मानिकचन्दजी, लाला मानिकचन्दजी, लाला गुलाबसिंहजी, लाला मुनीलालजी और लाला छुट्टनमालजी ५ पुत्र हुए। इनमें इस खानदान में अच्छे प्रतिष्ठित पुरुष हुए। आपका नामक जन्म संवत् १९०३ में तथा स्वर्गवास संवत् १९७३ में हुआ। आपके पुत्र लाला गुलजारीमलजी का जन्म संवत् १९४१ में तथा स्वर्गवास संवत् १९८३ में हुआ। लाला गुलजारीमलजी भी बड़े योग्य पुरुष थे। आपके मनोहरलालजी तथा मदनलालजी नामक २ पुत्र हुए, इनमें मनोहरलालजी का जन्म संवत् १९७१ में हुआ। आप दोनों माता सज्जन व्यक्ति हैं, तथा व्यापार का संचालन करते हैं।
सेठ चुनीलाल श्रीचन्द सिंघवी, लोनार (बरार) इस परिवार का मूल निवास बोरावड़ (मारवाद) है। वहाँ से लगभग ३० साल पहिले सेठ कालरामजी सिरोया सिंघवी ब्यापार के लिए लोनार आये और यहाँ आकर इन्होंने व्यापार आरम्भ किया, संवत् १९३५ में इनका स्वर्गवास हुआ। इनके रतनचन्दजी तथा चुन्नीलालजी नामक दो पुत्र हुए। सेठ चुनीलालजी सिंघवी का जन्म सं० १९०५ में हुआ था, आपके हाथों से दुकान को तरक्की मिली। संवत् १९४६ में इनका शरीरावसान हुआ ।