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मासवाल जाति का इतिहास
सिंघवी बछराजजी-सिंघवी बछराजजी का जन्म संवत् १०५ में हुआ। आप मुत्सुद्दियों के इस पतनकाल में भी जोधपुर के अन्तर्गत एक तेजपूर्ण नक्षत्र की तरह चमके, आप बड़े बहादुर, साहसी
और दिलेर तबियत के मुत्सुदी थे। आप जोधपुर में, फौजबख्शी और स्टेट कौंसिल के मेम्बर रहे । आपका परिचय इस ग्रन्थ के राजनैतिक महत्व नामक अध्याय में पृष्ठ ९६ पर दिया गया है। आपका स्वर्गवास संवत् १९७४ की माष बदी ।। को हुआ। . .
सिंघवी हंसराजजी-सिंघवी बछराजजी के पुत्र सिंवधी हंसराजजी का जम्म संवत् १९४७ में हुआ। शुरू में आप मारोठ और सोजत में हाकिम रहे। फिर जोधपुर के सिटी मजिस्ट्रेट बनाए गये । उसके पश्चात् आप संवत् १९८२ में साम्भर के और संवत् १९८६ में जोधपुर के हाकिम बनाए गये । इस समय आप इसी पद पर काम कर रहे हैं। आपको भी स्टेट से हाथी और सिरोपाव बख्शा हुआ है। आप जोधपुर के मुत्सुहियों में अच्छे प्रभावशाली व्यक्ति हैं आपके पुत्र मैट्रिक में हैं। ४. सिंघवी सुखराजजी के छोटे पुत्र समाजजी थे। इनके पुत्र गणेशराजजी १९६२ में गुजरे । गणेशराजजी के पुत्र दौलतराजजी हुए। सिंघवी गुलराजी
ये सिंघवी भीवराजजी के पांच पुत्र थे। महाराजा भीमसिंहजी के समय में ये हुकमत का काम करते रहे। महाराजा मानसिंहजी ने गद्दी नशीन होने पर इन्हें फौजबन्दी का सिरोपाव बंधाया । इसी साल चैत महिने में जब होलकर ने मारवाड़ पर चढाई की, तब ये और भण्डारी धीरजमलजी फौज लेकर भेजे गये। इन्होंने तथा शाह कल्याणमलजी लोढा ने होलकर को समझा बुझाकर वापिस कर दिया । संवत् १८७२ में इन्द्रराजजी के मारे जाने पर इन्हें बख्शीगिरी इनायत हुई। जब कई सरदार और मुत्सुहियों ने मिलकर महाराज मानसिंहजी के नाबालिग युवराज छत्रसिंह को गद्दी दिलाई उस समय गुलराजजी वड़े प्रभावशाली व्यक्ति थे। महाराजा मानसिंहजी के हित की दृष्टि से ये गद्दी दिलाने के पक्ष में न थे। इसका परिणाम यह हुआ कि कई वज़नदार सरदार इनके विरुद्ध हो गये और संवत १८७३ की वैशाख सुदी ३ को इन्हें किले में चूक (कस्ल ) करवा दिया गया। इनके पुत्र फौजराजजी उस समय बालक थे।
गुलराजजी के पुत्र फौजराजजी को संवत् १८८१ में खास रुक्का मेज कर दरवार ने जोधपुर बुलाया । यहाँ आने पर दरवार ने इन्हे खालसे की दीवानगी का काम सौंग । उसके पश्चात सम्बत् १८८२ से लेकर १९१२ तक ये फ़ौजवख्शी का काम करते रहे। जब १९१२ में इनका स्वर्गवास होगया तब
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