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सिंघवी
स्वां १० हजार और भींवराजजी १२ हजार फौज लेकर उससे मिलने गये और एक लाख रुपयों की हुण्डी
"तखत का पाया" कहकर सम्मानित
लिखकर उसको रवाना किया। बादशाह ने प्रसन्न होकर इनको किया और सिरोराव, तलवार, तथा मकना हाथी इनायत किये। सिरोपाव बख्शे ।
जयपुर दरवार ने भी इन्हें घोड़ा और
राजनीति ही की तरह सिंघवी भींवराजजी का धार्मिक जीवन भी बहुत उत्कृष्ट रहा। सोजत आपका बनाया हुआ भींवसागर नामक कुंभा अभी भी विद्यमान है। इसके अतिरिक्त आपने श्री नरसिंहजी और रघुनाथजी के भव्य मन्दिर भी बनवाये । आपका स्वर्गवास संवत् १८४८ में हुआ । आपके छः पुत्र हुए जिनके नाम क्रमशः अभयराजजी, अखेराजजी, इन्द्रराजजी, बनराजजी गुलराजजी तथा जीवराजजी था। इनमें से अभयराजजी और जीवराजजी का वंश आगे नहीं चला ।
सिंघवी अखैराजजी
सिंघवी अखैराजजी को संवत् १८४७ में बक्शीगिरी का पद मिला । जब किशनगढ़वालों ने आम्बाजी इंगलिया को बहका कर सात हज़ार फ़ौज के साथ मारवाड़ पर चढ़ाई की उस समय सिंघवी भीवराजजी ने भण्डारी गंगारामजी और सिंघवी अखैराजजी को उनका सामना करने को भेजा। इस लड़ाई में मराठों के पैर उखड़ गये, इसपर सिंघवीजी ने बीकानेर से खर्च के लिये तीन लाख रुपये लेकर किशनगढ़ पर चढ़ाई कर दी। संवत् १८५२ में देसूरी के पास लड़ाई करके उन्होंने गोडवाड़ तथा जालौर इत्यादि स्थानों से तहसील वसूल की। संवत् १८५५ में आपने जालौर का घेरा दिया इसी साल आप जालौर में कैद कर लिए गये और फिर मुक्त होकर संवत् १८५६ की चैत वदी ६ को पुनः बहशीगिरी के पद पर नियुक्त हुए। इस प्रकार आपके जीवन का एक-एक क्षण राजनैतिक घटनाओं और युद्धों में गुंथा हुआ रहा, आपकी बहादुरी और साहस के सबूत कदम-कदम पर मिलते रहे । आपका बनाया हुआ अखैतलाब इस समय भी विद्यमान है । आपका स्वर्गवास संवत् १८५७ में हुआ । आपके कोई सन्तान न होने से आपने अपने भतीजे मेघराजजी को दसक लिया ।
संवत् १८५७ में अखैराजजी के स्वर्गवासी हो जाने पर सिंघवी मेघराजजी को बक्शीगिरी का पद प्राप्त हुआ । संवत् १८८३ तक वे उस पद पर काम करते रहे । संवत् १९०२ में इनका स्वर्गवास हुआ । इनके पश्चात् इनकी संतानों में क्रमशः शिवराजजी, प्रयागराजजी और उगमराजजी हुए। उगमराजजी के पुत्र बलवन्तराजजी अभी विद्यमान हैं। अपने पूर्वजों की महान सेवाओं के उपलक्ष में इन्हें स्टेट से पेंशन मिलती है। इनके जसवंतराज और दलपतराज नामक दो पुत्र हैं। सिंघवी शिवराजजी संवत्
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