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बच्छावत
मैं भाषण दिया हो। इसके बाद भी आपने कई अवसरों पर अत्यन्त सफलता के साथ महाराणा साहब की तरफ से भाषण दिये ।
आपके साहित्यक जीवन का एक नमूना आपकी वृहद् लायब्ररी व आपकी चित्र शाला है। इस पुस्तकालय में आपने कई हस्तलिखित प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों का तथा कई मवीन और प्राचीन अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू की ऐतिहासिक, धार्मिक, राजनैतिक इत्यादि सभी विषय की पुस्तकों का संग्रह किया है। जिसके लिये आपको बहुत धन और श्रम खर्च करना पड़ा। इसी प्रकार आपकी चित्रशाला में मेवाड़ के महाराणा सांगा से लेकर अब तक के करीब २ सभी महाराणाओं के तथा आपके पूर्वजों में करमचन्दजी बच्छावत से लेकर अभी तक के बहुत से चित्र आइल पेंट किये हुए ढंग रहे हैं।
साहित्यिक जीवन की तरह आपका धार्मिक जीवन भी बड़ा अच्छा रहा है । आप श्री वल्लभ सम्प्रदाय के अनुयायी हैं । मगर फिर भी आप को किसी दूसरे धर्म से रागद्वेष नही है । योगाभ्यास के विषय में भी आपकी अच्छी जानकारी है । आप के योगाभ्यास को देख कर आयलॉजिकल डिपार्टमेंट के डायरेक्टर जनरल बहुत मुग्ध हुए। थे ।
आपका राजनैतिक जीवन भी उदयपुर के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है । उदयपुर के राजकीय वातावरण में आपकी बड़ी इज्जत और प्रतिष्ठा है । सब से पहले आप गिरवा जिले के हाकिम बनाये गये । उसके पश्चात् आप क्रमशः महकमा देवस्थान और महकमा माल के अफसर रहे। फिर महद्वाज सभा के मेम्बर हुए; जो अभी तक हैं। दिल्ली के अन्दर देशी रियासतों का प्रश्न हल करने के लिये बटलर कमेटी के सम्बन्ध में चेम्बर ऑफ प्रिन्सेस की ओर से जो स्पेशल ऑर्गेनिज्ञेशन् हुआ था, उसमें मेवाड़ राज्य की तरफ से जो कागजात भेजे गये थे, उनको महाराणा की आज्ञानुसार आप ही ने तयार किये थे । इन कागओं को लेकर आपही रियासत की तरफ से देहली गये थे । महाराणा साहब ने आपको दोनों पैरों में सोना, कई खिलअतें व पोशाकें, दो सुनहली मूठ की तलवारें, एक सोने की छड़ी, पगड़ी में बाँधने को मांझे की इज्जत बैठक की प्रतिष्ठा, बलेणा घोड़ा इत्यादि कई सम्मानों से सम्मानित किया । आपका विवाह संवत् १९३७ में शाहपुरा में हुआ । इस विवाह से आपको दो पुत्र हुए जिन के नाव कुँवर देवीलालजी और कुँवर उदयलालजी हैं। देवालालजी ने बी० ए० पास किया है ! आप महकमा देवस्थान के हाकिम रहे । उदयलालजी ने एफ० ए० पास किया और उसके पश्चात मेवाड़ के भिन्न २ जिलों के हाकिम रहे । देवीलालजी के कन्हैयालालजी और गोकुलदासजी दो पुत्र हैं । कन्हैयालालजी बी० ए० पास करके वैरिस्टरी पास करने विलायत गये हैं । कुँवर गोकुलदासजी एफ० ए० में पढ़ रहे हैं। आप दोनों भाइयों को भी दरवार ने बैठक की इज्जत वख्शी है ।
ऊपर मेहता फतेलालजी का परिचय बहुत ही संक्षिप्त में लिखा गया है । आपका साहित्य प्रेम इतना बढ़ा हुआ है कि उसका पूरा वर्णन किया जाय तो एक बड़ी पुस्तक तयार हो सकती है। देशी और विलायती भाषा के कई पत्रों में कई अवसरों पर आपके जीवन पर भाषा की पुस्तक में भी आपके जीवन पर टिप्पणी निकली हुई है। हास लिखने को आपके पास गये तो आपने पुराने कागज पत्रों के हो गये। इतनी बड़ी खोजपूर्ण सामग्री सिवाय बाबू पूरणचन्द्रजी नाहर के हमें और कहीं भी देखने
नोट निकले हैं। जब हम लोग
एक रूसी और इटली आपके कुटुम्ब का इतिदफ्तर खोल दिये, जिन्हें देख कर हम
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