________________
प्रोसवाल जाति का इतिहास मुहणोत परिवार "हटीसिंहोत” कहलाता है मुणोत हटीसिंहजी के जोगीदासजी शिवदासजी तथा शम्भूदासजी नामक ३ पुत्र हुए। जोगीदासजी ने कृष्णगढ़ महाराजा विरदसिंहजी तथा प्रतापसिंहजी के समय में राज्य की दीवानगी काम किया। तथा किशनगढ़ दरवार प्रतापसिंहजी का जोधपुर महाराजा विजयसिंहजी के साथ मित्रता कराने में आपने एवं आपके चचेरे भाई हमीरसिंहजी ने बहुत श्रम किया, इस कार्य में कृत कार्य होने से जोधपुर दरबार ने संवत् १८४९ की द्वितीय वैसाख वदी १० को ताजीम मोती, कड़ा और सोने की जनेऊ प्रदान की। इसी तरह किशनगढ़ दरवार ने भी ताजीम जीकारा और दरबार में सिरे बैठक हाथी सिरोपाव और जागीरी प्रदान की। हिन्दूसिंहजी ने महाराजा बहादुरसिंहजी के राज्य काल में माई. दासजी के साथ दीवानगी की ।
शिवदासजी - आप भी १८८७ में महाराजा कल्याणसिंहजी के समय दीवान रहे। जयपुर दरवार ने आपको जागीरी के गाँव दिये जो अब तक आपके परिवार के तावे में हैं।
. मेहता शंभूदासजी के महेशदासजी तथा शिवदासजी के गंगादासजी और भवानीदासजी नामक पुत्र हुए। महेशदासजी के पुत्र छगनसिंहजी कृष्णगढ़ महाराजा मदनसिंहजी की भगिनी और अवलर परेश की महाराणी के कामदार थे। आपको अलवर तथा किशनगढ़ दरवारों ने सोना तथा ताजीम इनापत की थी। आपके पुत्र नारायणदासजी बी० ए० भागरे में डिप्टीकलेक्टरी का अध्ययन कर रहे हैं। आपकी वय २७ साल की है। मेहत गंगादासजी, महाराजा मोहकमसिंहज़ी के समय में राज्य के मुख्य कोषाध्यक्ष रहे। इनके पुत्र गोविंदसिंहजी कई स्थानों के हाकिम रहे और इससमय गोविंददासजी के पत्रक पुत्र सवाईसिंहजी किशनगढ़ स्टेट में हाकिम है। भवानीदासजी के पश्चात् क्रमशः भगवानदासजी, रामसिंहजी तथा सोहनसिंहजी हुए । इनके पुत्र सवाईसिंहजी, मेहता गोविंदसिंह, के नाम पर दत्तक गये हैं।
मेहता पृथ्वीसिंहजी किशनगढ़ स्टेट में हाकिम रहे इनके भीमसिंहजी हुए। एवं भीमसिंहजी के पुत्र सोभागसिंहजी, भजीतसिंहजी, जसवन्तसिंहजी और अनोपसिंहजी नामक ४ पुत्र हुए। इनमें सोभागसिंहजी के पुत्र जेतसिंहजी और साल्मसिंहजी तथा पौत्र मदनसिंहजी और फूलसिंहजी हुए मदनसिंहजी उदयपुर तथा किशगढ़ स्टेट में हाकिमी करते रहे। अभी मदनसिंहजी के पुत्र बुधसिंहजी और फूलसिंहजी के पुत्र रणजीतसिंहजी मौजूद हैं।
__मेहता सूर्यसिंहजी के छोटे भाई वापसिंहजी महाराजा बहादुरसिंहजी के समय फौजवख्शी रहे। इनके प्रतापसिंहजीव धीरजमलजी पुत्र हुए। मेहता प्रतापसिंहजी, महाराजा श्री प्रतापसिंहजी के रूपापात्र थे। धीरजमलजी सरवाड़ के हाकिम रहे । मेहता धीरजसिंहजी के बाद क्रमशः गोवर्द्धनदासजी,