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सवाल जाति का इतिहास
वहाँ से चल कर आप बिहार होते हुए बंगाल को आये । आपके छः पुत्र और एक पुत्री हुई। इनमें से आपके चौथे पुत्र सेठ माणिकचन्दजी से हमारे जगत सेठ के खामदान का प्रारम्भ होता है । नागौर से निस्सहाय निकले हुए हीरानन्द का यह पुत्र बंगाल और देहली राजतंत्र में एक तेजस्वी नक्षत्र की भांति प्रकाशमान रहा। बड़े २ नवाब, दीवान, सरदार और अंग्रेज कम्पनी के भागेवान उसकी सलाह और कृपा के लिये हमेशा लालायित रहते थे। ये दो हजार सेना हर समय अपनी रक्षा और सम्मान के लिए निजी खर्च से अपने पास रखते थे । अठारहवीं सदी के बंगाल के इतिहास में जगत सेठ की जोड़ी का कोई भी दूसरा पुरुष दिखलाई नहीं देता । गरीब पिता का यह कुबेर तुल्य पुत्र अप्रत्यक्ष रूप से बङ्गाल, बिहार और उड़ीसा का भाग्यविधाता बना हुआ था ।
नवाब मुर्शिदकुलीखाँ और सेठ माणिकचन्द
उस समय बङ्गाल की राजधानी ढाका के अन्तर्गत थी । जिस समय सेठ माणिकचन्दजी ने अपनी कोठीको ढाके के अन्तर्गत स्थापित किया उस समय भारत के सारे राजनैतिक जगत में भूकम्प की एक प्रचण्ड लहर पैदा हो रही थी । मुगल साम्राज्य के अन्तिम प्रभावशाली बादशाह औरङ्गजेब का प्रताप धीरे धीरे २ क्षीण होता जा रहा था और स्थान २ के सरदार अपनी २ ताकत के अनुसार विद्रोहानि को प्रज्वलित कर रहे थे । उस समय बङ्गाल का नवाब अजीमुश्शान था जिसकी राजधानी ढाका में थी। उसके दीवान की जगह पर औरंगजेब ने मुर्शिदकुलीखाँ को भेजा था । इस मुर्शिदकुलीखाँ और सेठ माणिकचन्द के बीच में भाइयों से भी अधिक प्रेम था। ये दोनों बड़े कर्मवीर और साहसी थे । सेठ माणिकचन्द का दिमाग और मुर्शिदकुलीखाँ के साहस मे मिलकर एक बड़ी शक्ति प्राप्त करली थी ।
afragorea की प्रबल इच्छा थी कि वह बङ्गाल की नवाबी को प्राप्त करे । सेठ माणिकचन्दजी ने उसकी इस इच्छा को सफल करने में बहुत सहायता दी। उन्होंने उससे कहा कि यदि तुम अपनी उन्नति चाहते हो तो ढाके की इस पाप भूमि को छोड़ दो और अपने नाम से मुर्शिदाबाद नामक एक नवीन शहर की स्थापना करो। फिर देखो कि माणिकचन्द की शक्ति क्या खेल करके दिखाती है। यह मुर्शिदाबाद एक रोज बंगाल की राजधानी बनेगा; गंगा के तट पर एक टकसाल स्थापित होगी; अंग्रेज, फ्रेंच और डच लोग तुम्हारे पैरों के पास खड़े होकर कॉर्निस करेंगे और दिल्ली का बादशाह तो रुपये का भूखा है । जहाँ इस समय महसूल के एक करोड़ तीस लाख रुपया भेजा जा रहा है वहाँ हम लोग उसको दो करोड़ भेजेंगे और बतलायँगे कि मुर्शिदकुलीखाँ के ही प्रताप से बङ्गाल की स्मृद्धि दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।
इस प्रकार माणिकचन्द सेठ ने नवाब मुर्शिदकुलीखाँ को उत्साहित करके अपने अतुल वैभव
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