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बच्छावित
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घरसीजी, और वसीलजी वगैरह पुत्र उत्पन्न हुए। आगे चलकर इनमें से लूनकरनजी बड़े पुत्र होने के कारण बीकानेर की गद्दी पर बैठे।
__मंत्री बछराजजी के करमसीजी, बरसिंहजी, रतनसिंहजी और नाहरसिंहजी नामक चार पुत्र हुए। बछराजजी के छोटे भाई देवराजजी के दस्सुजी, तेजाजी और मूंणजी नामक तीन पुत्र हुए। इनमें से दस्सुजी के वंशज दस्साणी कहलाये।
राव बीकाजी के स्वर्गवासी हो जाने के पश्चात् उनके पाट पर राव लूनकरनजी बैठे। मापने बच्छावत करमसीजी को अपना मन्त्री बनाया । करमसीजी ने अपने नाम से करमसीसर नामक एक गांव बसाया । आपने राव लनकरनजी की शादी चित्तौड़ के महाराणा की पुत्री से करवाने का प्रयत्न किया। इसके अतिरिक्त आपने बहुत से स्थानों के लोगों को बुलवाकर उनका एक संघ निकाला तथा बहुतसा रुपया खर्च कर श्री जिनहंससूरि महाराज का पाट महोत्सव किया। संवत् १५७० में बीकानेर नगर में आपने श्री नेमी. नाथ स्वामी का एक बड़ा मन्दिर बनवाया जोकि इस समय में भी विद्यमान है। इसके अतिरिक्त आपने शत्रुजय, गिरनार और भावू नामक तीर्थों की यात्रा के लिए एक बड़ा संघ निकाला तथा अपने पूर्वजों की तरह मार्ग में अपने साधर्मों भाइयों को एक मुहर, एक थाल और एक मोदक लहाण में बांटा। आप मारमोल ( मन्दिगोकल-जैसलमीर ) के लोदी हाजोखां के साथ युद्ध कर उसी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए।
राव लूनकरनजी के पश्चात् उनके पुत्र राव जेतसीजी बीकानेर की गद्दी पर बैठे। आपकी धर्मपत्नी का नाम काश्मीरदेवी था। आपने बच्छावत करमसी के छोटे भाई बच्छावत बरसिंहजी को अपना मंत्री बनाया। बरसिंहजी के मेघराजजी, नगराजजी, अमरसीजी, भोजराजजी, डूंगरसीजी और हरराजजी नामक छः पुत्र हुए। इनमें से डूंगरसीजी के वंशज डूंगराणी कहलाये। बरसिंहजी के द्वितीय पुत्र मगराजजी के संग्रामसिंहजी नामक पुत्र हुए। संग्रामसिंहजी के पुत्र का नाम कर्मचन्दजी था।
___बरसिंहजी भी शजय आदि तीर्थों की यात्रा करने के लिए गये । जहां ये चांपानेर के बादशाह मुजफ्फर के पास भी गये । बादशाह ने इनका अच्छा स्वागत किया तथा छः माह तक उन्हें वहीं रक्खा । और वहाँ का आपको किलेदार बनाया। आपने गिरनार आबू आदि तीर्थों का संघ निकाला तथा रास्ते के पात्राकरों को छुड़वाया । आपने एक धर्मशाला भी बनवाई । . बरसिंहजी के पश्चात् इनके दूसरे पुत्र नगराजजी मंत्री हुए। इसी समय जोधपुर के राजा मालदेव ने जांगलू देश को अपने अधिकार में करने की इच्छा की। यह जानकर राव जैतसीजी ने नगराजजी को कहा कि मालदेव से विजय प्राप्त करना कठिन है। जब तक मालदेव यहां चढ़ न आवे तब
- कुछ लोग संग्रामसिंहजी को अमरसीजी का पुत्र होना बतलाते है।
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