________________
perfection and let them not become merely nominal. Remember that the great aim of life is to succeed, not to commence a good work and leave it unfinished."
With best wishes and kind regards.
इसी प्रकार मि० जी० एच० ट्रेव्हर ए० जी० जी० राजपूताना ने लिखा है:
"Rai Pannalal Mehta C. I. E. has been the chief official of the Odeypore Darbar for, I believe, about twenty five years and, has been highly praised for 'his abilities by successive Residents. He now retires from the office having been held in High Estimation by the Government and the regret of many friends in Mewar.
My best wishes attends. I trust he will find pease and repose after his long distinguished career.
बच्छाव
अब महाराणा सज्जनसिंहजी का स्वर्गवास हुआ तबतक उन्होंने किसी को भी अपना उत्तरा धिकारी बनाने की इच्छा प्रगट नहीं की। मेवाड़ में ऐसा नियम चला आता है कि गढ़ी काकी न रहे। मह समय जरा कठिनाई का था लेकिन पन्नालालजी की कार्य दक्षता के कारण महाराणा फतेसिंहजी उसी रोज राजगद्दी पर विराज गये। इस बात की प्रशंसा गवर्नर जनरल ने भी की थी।
श्रीयुत पखालालजी ने अपने पिताजी की यादगार में नाथ द्वारा में एक सदाव्रत खोला। जिससे गरीब लोगो को सीधा ( पेव्या) दिया जाता है। आपने बादी के नाम से उदयपुर में एक मशहूर बगीचा बनाया; एक बावड़ी और धर्मशाला भी बनवाई। वहाँ के शिला लेख से प्रतीत होता है कि आपने उदयपुर नगर की बाड़ी नाथ द्वारा के मन्दिर को भेंट की है। धार्मिक काव्यों पर भी पूरा लक्ष्य था । आपने चारों धामों की यात्रा की थी । आप पूरे बोधसिंहजी के विवाहों पर महाराणा साहब स्वयं ही समय आपके पुत्र तथा भतीजे को पैरों में पहनने को स्वर्ण देकर सम्मानित किया था ।
आपका पितृभक्त थे जनाने सहित
।
ऐसे बहुत कम अवसर आते हैं कि एक व्यक्ति अपने ही समय में चार पुस्तों को देख सके । मगर यह सीमाम्ब भी आपको प्राप्त था। आपके समय में आपके प्रपौत्र भी मौजूद थे। जिस समय आपके प्रपीत्र हुए उस समय आप सोने की निसरनी पर चढ़े और उस निसरनी के टुकड़े कर वितरण करवा दिये थे। इसी समय उदयपुर की समग्र ओसवाल जाति में भी पीढ़िये मोड्ने बटवाये थे ।
२३.
आपके पुत्र फतेलालजी तथा भतीजे आपकी हवेली पर पधारे थे और दोनों