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बच्छावत
बारहवीं शताब्दी की बात है कि जिस समय सिरोही और जालोर के देवदा वंश का
सगर नामक एक वीर और प्रतापशाली व्यक्ति देलवाड़ा* नामक स्थान पर शासन करता था। इसके पराक्रम की चारों ओर धूम मची हुई थी। इसी समय चित्तौड़ाधिपति महाराणा रतनसी पर मालवे के अधिपति महमूद ने चढ़ाई की। इस विपत्ति के समय में महाराणा ने सगर के गुणों से परिचित हो कर उन्हें अपनी सहायतार्थ युद्ध का निमन्त्रण दिया । सगर अपनी चतुरङ्गिणी सेना लेकर राणा की सहायतार्थ आ पहुँचे । सगर की वीरता के भागे बादशाह को हार खानी पड़ी। वह पराजित होकर भाग खड़ा हुआ। सगर ने उसका पीछा किया फलस्वरूप मालवे पर सगर का अधिकार हो गया।
___कुछ समय पश्चात् गुजरात के मालिक बहिलीम जातभहमद बादशाह ने राना सगर से कहला भेजा कि तुम मुझे सलामी दो और हमारी नौकरी मंजूर करो, नहीं तो मालवा प्रांत तुम से छीन लिया जायगा।
उपरोक्त बात स्वीकार न करने पर सगर और गुजरात के स्वामी दोनों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। अंत में सगर अपना अपूर्व वीरत्व प्रदर्शित करते हुए विजयी हुए। बादशाह हारकर भाग गया। इस प्रकार गुजरात पर भी सगर का अधिकार हो गया। कुछ समय के पश्चात् फिर गौरी बादशाह ने राणा रतनसी पर आक्रमण किया। (सम्वत् १३०३ ) इस बार भी महाराणा ने सगर को याद किया। सगर आज्ञा पाते ही राणाजी को सहायतार्थ आ पहुँचे। इस बार सगर ने राणाजी तथा बादशाह को समझा
*देलवाड़ा नाम के दो स्थान है-पहला गुजरात में और दूसरा मेवाड़ में। हमारा खयाल है कि सम्भवतः यह स्थान मेवाड़ वाला ही हो । इसके दो-तीन प्रमाण है । पहला यह कि उदयपुर के मुख्य द्वार का जिसे आजकल देवारी कहते है, वास्तविक नाम देवा बारी है। यहाँ पर आज भी देवड़ा वंशीय राजपूत लोगों की चौकी है। संभव है इसी स्थान पर या आस पास के स्थानों पर देवड़ा वंशियों का राज्य रहा हो कि जिससे इसका नाम देवलवाड़ा पड़ा हो । दूसरा यहाँ बहुत से जैन मन्दिर हैं, इसलिए इसका नाम देवलवाड़ा या देवल पट्टम पड़ा हो, और देवड़ा वंशियों का गज्य रहा हो कि जिस वंश के राना सगर महाराणा की सहायतार्थ युद्ध में गये हों। तीसरा यह भी प्रसिद्ध है कि महाराणा उदयसिंहजी का विवाह देवड़ा वंशीय राजपूतों के यहाँ हुआ था, जिनसे कुछ जमीन लेकर वहाँ एक तालाब बनवाया जो वर्तमान समय में उदयसागर नाम से प्रसिद्ध है। उपरोक्त प्रमाणों से यही सिद्ध होता है कि देवड़ा राजपूतों का स्थान यही देलबाड़ा है।