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श्रोसवाल जाति का इतिहास
(संचेती ) गौत्र के साहा भीकू के पुत्र साहा नान्हा ने अपने माता पिता के श्रेय के लिये श्री शांतिनाथ का विम्ब स्थापित किया और उपकेश गच्छ के ककूदाचार्य ने उसकी प्रतिष्ठा की। नवराई का जैनमंदिर
यह स्थान फैजाबाद से १० मील और सोहावल स्टेशन से अंदाज २ मील पर बसा हुआ है। यह प्राचीन तीर्थ · रत्नपुरी' कहलाता है। यहाँ पंद्रहवें तीर्थकर श्री धर्मनाथस्वामी का च्यवन, जन्म दीक्षा तथा केवल ज्ञान ये चार कल्याणक हुए हैं। यहाँ की पंचतीर्थयों और पाषण के चरणों व धातु तथा पाषण की मूर्तियों पर कुछ लेख खुदे हुए हैं। इनमें पुराने लेखों की संख्या बहुत कम है। एक लेख संवत् १५१२ की माघ सुदी ५ का है, जिसमें श्री सिद्धसूरि द्वारा श्री सुविधिनाथ के बिम्ब के प्रतिष्ठित किये जाने का उल्लेख है। दूसरा लेख १५६७ की वेशाख सुदी १० बुधवार का है जिसमें ओस. वाल जाति के हासा नामक एक सज्जन द्वारा श्री पार्श्वनाथ भगवान के बिम्ब के स्थापित किये जाने का उल्लेख है। तीसरा लेख सम्वत् १६१७ की जेठ सुदी ५ का है। इसमें ओसवाल जाति के साः अमरसी के पौत्र कहाना के द्वारा पद्मप्रभुनाथ का बिम्ब स्थापित किये जाने का वर्णन है और प्रतिष्ठाचार्य के स्थान मैं तपाच्छ के श्री विजयदानसूरि का नाम दिया है । चन्द्रावती का जैन मंदिर
यह तीर्थ बनारस से ७ कोस पर गंगा किनारे अवस्थित है। जैन ग्रन्थों में लिखा है कि आठवें तीर्थकर श्री चन्द्रप्रभू स्वामी का च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान इसी नगरी में हुए। दुःख है कि इसमें जितने शिलालेख हैं वे सब नवीन हैं उन्नीसवीं सदी के पहले का कोई शिलालेख यहाँ नहीं मिलता।
मधुवन
यह स्थान बिहार में है तथा जैन शास्त्रों में स्थान-स्थान पर इसका उल्लेख आया है। यहाँ के जैन श्वेताम्बर मन्दिर की पंच तीर्थियों पर कई लेख खुदे हुए हैं। एक लेख संवत् १२१० की आषाढ़ सुदी ९ का है। यह लेख खंडित होने से पूरा नहीं पढ़ा गया। दूसरा लेख संवत् १२३५ की वैशाख सुदी ३ बुधवार का है । इसमें श्री पूर्ण भद्र सूरि के द्वारा श्रीपार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाके प्रतिष्ठित किये जाने का उल्लेख है। तीसरा लेख संवत् १२४२ की वैशाख सुदी ४ का है, जिसमें श्री जिनदेव सूरि