________________
ओसवालं जाति और प्राचार्य
अमरचन्द्रसूरि
___ आप संस्कृत साहित्य के बड़े ही नामांकित बिहान् थे। भाप के ग्रंथों की कीर्ति न देवक जैन समाज में वरन् ब्राह्मण समाज में भी फैली हुई थी। ब्राह्मणों में उनके बालभारत और कवि कल्पलता ग्रंथ विशेष प्रख्यात् हैं। भाप ने कवि कल्प लता पर कवि शिक्षा" नाम की टीका भी रची। इसके अतिरिक्त आपने छंदो स्तनावली, काय करूप लता परिवल, अलंकार प्रबोध, स्याद्वाद समुच्चय, पद्मानंद काव्य आदि अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथ रचे। आप के पद्मानंद काव्य में २४ तीथङ्करों का चरित्र अंकित किया गया है । इसी से उसका दूसरा नाम जिनचरित्र भी है।
अमरचन्द्रसूरि बड़े मेधावी और प्रतिभावान कवि थे। वस्तुपाल जैसे महान् पुरुष उनके पैरों में सिर झुकाते थे। राजा विसलदेव भी उन्हें बहुत मानते थे। जयसिंहसूरि
___ आप वीरसूरि के शिष्य और भडोच के मुनि सुखत स्वामी के मन्दिर के आचार्य थे। एक समय मंत्री तेजपाल यात्रा करते हुए उक्त मन्दिर में पहुंचे। तब उक सूरिजी ने एक काग्य के द्वारा आप की स्तुति की और उक्त मंत्री महोदय से सोने का ध्वजा दंड चढ़ाने का आग्रह किया। मंत्री तेजपाल मे सूरिजी के इस आग्रह को स्वीकार किया और उन्होंने मन्दिर पर सोने का ध्वजा डंड चढ़ा दिया। इस पर सूरिजी ने वस्तुपाछ तेजपाल नामक दोनों भाइयों की प्रशंसा में एक सुंदर प्रशस्ति काव्य रचा, और उसे उक्त मन्दिर की भीत में खुदवा दिया। इस काव्य में मूलराज से वीरधवल राजा तक की वंशावली तक का ऐतिहासिक वर्णन दिया गया है। इसके सिवाय आपने हम्मीरमद मर्दन काग्य नामक एक नाटक ग्रंथ रचा। यह एक ऐतिहासिक नाटक है और इसमें वस्तुपाल तेजपाल द्वारा मुसलमानों के आक्रमणों को विफल किये जाने का मधुर वर्णन है। इस नाटक की ताइपत्र पर लिखी हुई सनत् १२८६ की एक प्रति मिली है।
उदयप्रभुसूरि
भाप वस्तुपाल के गुरू तथा विजयसेनसूरि के शिष्य थे । आप को वस्तुपाल ने सूरिपद से अलंकृत किया था। मापने सुकृति कल्लोलिनी नामक प्रशस्ति काव्य की रचना की, जिस में वस्तुपाल तेजपाल के धार्मिक कार्यों और यश का गुणानुवाद किया गया है। संवत् १२७८ में जब वस्तुपाल ने शत्रुजय की