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ओसवाल जाति और प्राचार्य
मरंगौखाँ के पास भेज देता हूँ। आप निश्चिन्त रहिये, अब शर्बुजय की भली प्रकार रक्षा हो जायगी।"
जब सम्राट अकबर काश्मीर जाने की तयारी करने लगे तब आप ने करमचन्द मंत्री द्वारा जिनचन्द्रसूरिजी को अपने पास बुलवाया और उन से "धर्मलाम" लिया। इसी समय उक्त सूरिजी को प्रसन्न करने के लिये सम्राट ने अपने सारे साम्राज्य में सात दिन तक जीव हिंसा न करने के फरमान जारी किये। इन फरमानों की नकलें हिन्दी की सुप्रसिद्ध मासिक पत्रिका सरस्वती के १९१२ के जून मास के अंक में प्रकाशित हुई हैं। उक्त फरमान देशी राज्यों में भी भेजे गये जहाँ पर उनका भली प्रकार अमल दरामद हुआ।
___ कहने का अर्थ यह है कि जिनचन्द्रसूरि ने भी अपनी प्रखर प्रतिभा का प्रकाश सम्राट अकबर पर डाला था। सम्राट अकबर ने आप को "युग प्रधान" की पदवी से विभूषित किया और उनके शिष्य मानसिंह को जाचार्य पद प्रदान किया। इसी समय फिर मंत्री करमचन्द की विनती से सम्राट ने कुछ दिनों तक जीव हिंसा न करने की सारे साम्राज्य में घोषणा की। इसके अतिरिक्त सम्राट ने खम्भात के समुद्र में एक वर्ष तक हिंसा न करने का फरमान भेजा।
___संवत् १६६९ में सम्राट जहाँगीर ने यह हुक्म दिया कि सब धर्मों के साधुओं को देश निकाला दे दिया जाय। इससे जैन मुनि मण्डल में बड़ा भय छा गया। यह बात सुन कर जिनचन्द्रसूरिजी पाटन से आगरा आये और उन्होंने बादशाह को समझा कर उक्त हुकुम रद्द करवा दिया।
मनि शान्तिचन्द्र
आप हरिविजयसूरि के शिष्य थे। आपने सम्राट अकबर की प्रशंसा में कृपा रस कोष नाम का काव्य रचा। आपका भी बादशाह अकबर पर अच्छा प्रभाव था। आपने उनके द्वारा जीव दया, जजिया कर की माफी आदि अनेक सस्कृत्य करवाये। यह बात शान्तिचन्द्रजी के शिष्य लालचन्द्रजी की प्रशस्ति में स्पष्टतः लिखी हुई है।
मुनि शान्तिचन्द्रजी बढ़े विद्वान और शास्त्रार्थ कुशल थे। संवत् ११३५ में इंडरगद के महाराज श्री नारायण की सभा में आपने वहाँ के दिगम्बर भट्टारक वादिभूषण से शास्त्रार्थ कर उन्हें परास्त किया था। बांगद देश के धारशील नगर में वहाँ के राजा के सामने आपने गुणचन्द्र नामक दिगम्बरा. चार्य को शास्त्रार्थ में पराजय किया था। आप शतावधानी भी थे। इससे सम्राट और राजा महाराजाओं पर आप का बड़ा प्रभाव था।