________________
श्रोसवाल जाति का इतिहास
सुप्रख्यात् पुरातत्वविद् रायबहादुर महामहोपाध्याय पं. गौरीशङ्करजी ओझा के मतानुसार यह मूर्ति आठवीं सदी की है। हस्तिकुण्डी के जैन मन्दिरों के लेख
- हस्तीकुण्डी मारवाड़ के गोड़वाड़ प्रांत में अत्यन्त प्राचीन स्थान है। यहां के एक जैन मन्दिर में बहुत ही प्राचीन शिलालेख है। उन्हें जोधपुर निवासी पण्डित रामकरणजी ने 'एपिग्राफिया इण्डिका' के दसवे भाग में प्रकाशित किये हैं।
ये शिलालेख पहले पहल केप्टन बर्क को मिले थे। इसके बाद वह बीजापुर की एक जैन धर्मशाला में भेज दिये गये। इसके बाद वह अजमेर के म्युजियम में लाये गये ।
प्रथम लेख में सब मिल कर ३२ पंक्तियां है। इसका कुछ भाग घिसा हुआ है और कुछ अक्षर मिट गये हैं। इसको लिपि नागरी है। प्रोफेसर किलहान ने प्रगट किया है कि यह लिपि विक्रम सम्वत् १०४० के विग्रह राज वाले लेख से मिलती जुलती है। भाषा पद्यात्मक संस्कृत है। एक ही शिलालेख में दो जुदे-जुदे लेख खुदे हुए हैं। पहला लेख १० पर्यों में समाप्त हुआ है और वह वि० सं० १०५३ का है और दूसरा लेख २१ पद्यों का है। वह संवत् ९९६ का है। पहले लेख में २१ पंक्तियां और दूसरे में १० पंक्तियां है। पहले लेख को रचना सूर्याचार्य नामक किसी जैन साधु ने की है। इसके प्रारम्भ के दो काव्यों में जिन देव की स्तुति की है। तीसरे काव्य में राजवंश का वर्णन है। पर दुर्भाग्य से उनका नाम घिस जाने से पढ़ा नहीं जाता। चौथे काव्य में राजा हरिवर्मा का और पाँचवें में विदग्धराज का वर्णन है। विदग्धराज, जैसा कि शिलालेख के दूसरे भागों में कहा गया है, राष्ट्रकूट वंश का था। छठे पद्य में वासुदेव नामक आचार्य के उपदेश से हस्ती कुण्डी में विदग्धराज द्वारा एक मंदिर बनवाये जाने का उल्लेख है। सातवें ग्लोक में अपने शरीर के वजन के बराबर उक्त राजा द्वारा स्वर्णदान किये जाने का उल्लेख है । आठवें पद्य में विदग्धराज राजा की गादी पर मंमट नामक राजा के बैठने का और फिर उसकी गद्दी पर धवलराज के बैठने का उल्लेख है। धवलराज के यश और शौर्यादि गुणों के वर्णन में दस काव्य लिखे गये हैं। दसवें श्लोक में लिखा है-" जब मुंजराज ने मेदपाट ( मेवाड़) के अघाट नामक स्थान पर चढ़ाई की और उसका नाश किया और जब उसने गुर्जर नरेश को भगा दिया तब धवलराज ने उनकी सैय को आश्रय दिया था। ये मुंजराज प्रोफेसर किलहॉर्न के मतानुसार मालव के प्रसिद्ध वाक्पति मुंजराज थे। क्योंकि वे वि० संवत १०३१ से १०५० तक विद्यमान थे। यद्यपि उक्त लेख में तत्कालीन मेवाड़ नरेश का नाम नहीं दिया गया है पर उस समय मेवाड़ में खुमाण नामक प्रसिद्ध राजा राज्य करता था।
१८१