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श्री सवाल जाति का इतिहास
श्री शांतिनाथजी और अष्टापदजी के मंदिर
ये दोनों मंदिर एक ही अहाते में है । ऊपर की भूमि में श्री शान्तिनाथजी का और निम्नतल में अष्टापदजी का मंदिर बना हुआ है। निम्नतल के मंदिर में सत्रहवें जैन तीर्थङ्कर श्री कुंथनाथजी की मूर्ति मूलनायक रूप से प्रतिष्ठित है। इन दोनों मन्दिरों की प्रशस्ति एक ही है और जैनी हिन्दी में लिखी हुई है । संवत् १५३६ में जैसलमेर के संखवालेचा और चौपड़ा गौत्र के दो धनाढ्य सेठों ने इन मंदिरों की प्रतिष्ठा करवाई । संखवालेचा गौत्रीय खेता और चौपड़ा गौत्रीय पांचा में वैवाहिक सम्बन्ध था। इन दोनों ने मिलकर दोनों मंदिर बनवाये थे । खेताजी ने सहकुटुम्ब शत्रुंजय, गिरनार, आबू आदि तीर्थों की यात्रा कई बार बड़े धूमधाम के साथ की। सम्वत् १५८१ में इनके पुत्र वीदा ने मंदिर में एक प्रशस्ति लगाई जिसमें इन सब बातों का उल्लेख है। मंदिर के बाहर दाहिनी तरफ पाषाण के बने हुए दो बड़े २ सुन्दर हाथी रखे हुए हैं। इन दोनों पर धातु की मूर्तियां हैं जिनमें एक पुरुष की और दूसरी स्त्री की है। खेताजी के पुत्र बीदा मे संवत् १५०० में अपने माता पिता की ये मूर्तियाँ प्रतिष्ठित की थीं। इनमें से केवल एक पर एक लेख खुदा हुआ है। इस समय जैसलमेर की गद्दी पर महारावल देवकरणजी थे। सम्बत् १५१६ में जब इस मंदिर की प्रतिष्ठा हुई उस समय खरतर गच्छ के श्री जिनसमयसूरिजी उपस्थित थे ।
श्री चन्द्रप्रभूस्वामी का मंदिर
संवत् १५०९ में ओसवाल वंशीय भणशाली गौत्रीय शाह बीदा ने इस मंदिर की प्रतिष्ठा कराई थी। इस मंदिर के द्वितल की एक कोठड़ी में बहुत सी धातुओं की पं तीर्थों और मूर्तियों का संग्रह है । श्री शीतलनाथजी का मंदिर
यह मंदिर ओसवाल वंशकै डागा गौत्रीय सेठों का बनवाया हुआ है। यहाँ की पट्टिका के लेख में संवद १४७९ में इन्हीं डाों द्वारा इसकी प्रतिष्ठा करवाई जाने का उल्लेख है। इस मंदिर में कोई प्रशस्ति नहीं है । श्री ऋषभदेवजी का मंदिर
इस मंदिर की मूर्तियों पर जो लेख हैं उनसे ज्ञात होता है कि यह मंदिर ओसवाल समाज के गणधर चौपड़ा गौत्र शाह धन्ना ने बनवाया था, और उसीने खरतरगच्छीय आचत्ययों के द्वारा इसकी प्रतिष्ठा करवाई थी । इस की मूर्ति संख्या लगभग ६०७ है ।
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