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ओसवाल जाति का इतिहास ही नहीं, उन्होंने ठेठ गजनी तक जैन धर्म के महान् सिद्धान्त-जीव दया का प्रचार किया था। बादशाह महाँगीर ने उन्हें "युग प्रधान" की पदवी समर्पण की थी।
- इस नगर में छोड़ों का एक मन्दिर है जिसमें चिंतामणि पाश्वनाथ की प्रतिमा है। उस प्रतिमा पर संवत् ११६९ की माघ सुदी ५ मुबार व एक लेख खुदा हुआ है। उससे ज्ञात होता कि महाराजाधिराज सूर्यसिंहजी के राज्यकाल में ओसवाल जाति के लोदा गौत्रीय शाह रायमल के पुत्र सखा वे पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा तैयार करवाई तथा खरतरगच्छ आदि शाखा वाले जिनसिंहसूरि के शिष्य जिनचन्द्रसूरि ने उसकी प्रतिष्ठा की । इस प्रकार वहाँ के कई मन्दिरों की कई मूर्तियां पर अनेक देख है उन सब का स्थानाभाव के कारण हम वर्णन नहीं कर सकते । हम सिर्फ एक दो खास २ लेखों के सम्बन्ध में ही कुछ प्रकाश डालना चाहते हैं।
मेड़ते के नये मन्दिर की मूर्ति पर जो लेख है उसमें कुछ गड़बड़ हो गई है। भारम्भ की चार पंक्तियों के साथ अन्त की चार पंक्तियों का बराबर सम्बन्ध नहीं मिलता। अनुमान किया जाता है कि कि इसमें जुदे २ लेखों का सम्मिश्रण हो गया है। पर इसके पिछले भाग में जिनचन्द्रसूरि का वर्णन है जिसमें कहा गया बादशाह अकबर ने उक्त सूरिजी को “युग प्रधान" की पदवी प्रदान की थी। उनके करने से बादशाह ने प्रतिवर्ष भाषादमास के शुक्ल पक्ष के भाखिरी माठ दिनों में जीव हिंसा न करने का भादेश प्रसारित किया था। इतना ही नही स्तम्भन तीर्थ (खम्भात) के सागर में मछली मारने की भी सख्त मनाई कर दी थी। शजय तीर्थ का कर बंद कर दिया गया था। सव स्थानों में गौरक्षा करने की भाज्ञा प्रसारित की गई थी। फलौदी पार्श्वनाथ का जैन मन्दिर
मारवाद का सुप्रख्यात् तीर्थ फलौदी पाश्र्वनाथ का नाम सारे जैन जगत् में प्रख्यात् है। यहां पर बड़ा ही विशाल, भव्य और सुन्दर जैन मन्दिर है। यहां पर प्रति वर्ष मेला लगता है । तपेगच्छ की पट्टावली के अनुसार सुप्रसिद्ध आचार्य देवसूरिजी ने विक्रम संवत् १२७४ में इस मन्दिर की प्रतिष्ठा की थी। इस मन्दिर के द्वार के दोनों बाजुओं पर दो लेख खुदे हुए हैं। पहला लेख संवत् ११३॥ मार्गशीर्ष ५ का है, जिससे ज्ञात होता है कि पोरवाल जाति रोपिमुरसी और भं० दशाद ने मिल कर इस मन्दिर को जरी से भरा हुआ चन्दरवा चढ़ाया।
दूसरा लेख तीन श्लोकों में समाप्त हुआ है। उससे ज्ञात होता है कि श्रेष्ठी (सेठ) मुनिचय में फलौदी पाश्र्वनाथ के मन्दिर में एक मजुत् उत्तानपा बनवाया और इसने नरवर गाँव के मन्दिर में सुंदर