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धार्मिक क्षेत्र में सवाल जाति
साहब के प्रधान थे । ये विपुल द्रव्य के स्वामी थे और इन्होंने धर्मप्रभावना और उसकी जहोजलाली के लिए लाखों रुपये खर्च किये ।
शत्रुञ्जयतीर्थ और थीहरुशाह भंसाली
जैसलमेर के सुप्रसिद्ध थीहरुशाह भंसाली का नाम उनकी धार्मिकता और उनकी उदारता की वजह से आज भी मारवाड़ के बच्चे २ की जिव्हा पर अंकित है। इस थीहरुशाह भंसाली ने शत्रुंजयतीर्थ पर चौबीसों तीर्थकरों के १४५२ गणधरों के चरण युगल एक साथ स्थापित किये । उसका लेख शत्रुम्जय पहाड़ पर खरतरवसही टोंक की पश्चिम दिशा में स्थित मन्दिर में उत्तर की ओर खुदा हुआ है। इसका मतलब इस प्रकार है ।
"आदिनाथ तीर्थकर से लेकर भगवान महावीर तक चौबीस तीर्थकरों के सब मिलाकर १४५१ गणधर हुए हैं। इन सब गणधरों के एक साथ इस स्थान पर चरणयुगल स्थापित किये गये हैं। जैसलमेर निवासी ओसवाल जातीय अँडसाली गौत्रीय सुश्रावक शाह श्रीमल (भार्या चापलदे) के पुत्र थीहरुशाह ने जिसमे कि लोद्रवा पट्टन के प्राचीन जैन मन्दिरों का जीर्णोद्वार किया था और चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी, प्रतिष्ठा के समय प्रति मनुष्य एक १ सोनेकी मुहर लान में दी थी। इसके अतिरिक्त संघनायक के करने योग्य देव पूजा, गुरु उपासना, साधमीं वात्सल्य इत्यादि सभी प्रकार के धार्मिक कार्य्यं किये थे और शत्रुंजय की यात्रा के लिए एक बड़ा संव निकाल कर संघपति का तिलक प्राप्त किया था— उन्होंने पुण्डरीकादि १४:५२ गणधरों का अपूर्व पादुका स्थान अपने पुत्र हरराज और मेघराज सहित पुण्योदय के लिए बनाया और संवत् १६८२ की जेठ बदी १० शुक्रवार के दिन खरतरगच्छ के आचार्य जिनराजसूरि ने उसकी प्रतिष्ठा की ।
इस प्रकार उपरोक्त लेखों को ध्यान पूर्वक मनन करने से पता चलता है कि इस महातीर्थ के पुनरुद्धार, रक्षा और जाहोजलाली के काम में ओसवाल जाति के नर रत्नों का कितना गहरा हाथ रहा है । इन लोगों ने इस महातीर्थ के लिए समय २ पर लाखों रुपये खर्च किये ।
ऊपर हम खास २ बड़े २ दानवीरों के द्वारा किये हुए कार्यों का वर्णन कर चुके हैं। इनके सिवाय छोटे २ तो कई लेख शत्रुञ्जय तीर्थ पर ओसवालों के द्वारा किये हुए कामों के सम्बन्ध में पाये जाते हैं । ( १ ) यह लेख संवत् १७१० का है, जो बड़ी टोंक में आदीश्वर के मुख्य प्रासाद के दक्षिण द्वार के सम्मुख सहस्रकूट मंदिर के प्रवेश द्वार के पास खोदा हुआ है, जिससे पता लगता है कि संवत् १७१० के ज्येष्ठ खुदी १० गुरुवार को आगरा शहर निवासी ओसवाल जाति के कुहाड़ गौत्रीय शाह वर्द्धमान के पुत्र १३७
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