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जोधपुर राज्य के मोसवाल दीवान
३०-भण्डारी अमरसिंहजी (खींवसीजी के पुत्र) सम्बत् १७८५ की भाषाढ़ सुदी १४ से १७८८ तक ३१-सिंघवीं अमरचन्दजी (सायमलजी के पुत्र ) १७९३ आसोज सुदी १० से १७९४ चैत्र सुदी ७ तक ३२-भण्डारी अमरसिंहजी (खीवसीजी के पुत्र) सम्बत् १७९९ की कार्तिक सुदी १ से १८०१ के ज्येष्ठ तक ३३-भण्डारी गिरधरदासजी (रतनसिंहजी के भाई)-संवत १८.1 के ज्येष्ठ से १८०४ के भादवा तक ३४-भण्डारी मनरूपजी (पोमसीजी के पुत्र)....."सम्बत् १८०४ के भादवा से १८०६ के मगसर तक ३५–भण्डारी सूरतरामजी ( मनरूपजी के पुत्र) ... ... ... ... सम्वत् 1००६ ३६ -भण्डारी दौलतरामजी (थानसीजीके पुत्र) । संवत् १८०६ की सावण सुदी १० से १८०७ की ३७-भण्डारीसूरतरामजी (मनरूपजी के पुत्रः
आसोज सुदी १० तक। ३८-भण्डारी सवाईरामजी (रतनसिंहोत) १८०७ की आसोज सुदी १० से १८०८ की श्रावण वदी तक ३९-सिंघवी फतेचन्दजी (सरूपमलोत) १८०८ की श्रावण वदी २ से १८१८ की आसोज वदी १४ तक ४०-भण्डारी नरसिंहदासजी(मेसदासोत) संवत् १८१९ की जेठ सुदी ५ से १८२० की जेठ सुदी ५ तक ४१-मुहणोत सूरतरामजी (भगवतसिंहोत) १८२० की जेठ सुदी ५ से सं० १८२३ आसोज सुदी ९ तक ४२-सिंघवी फतेहचन्दजी* (सरूपमलजी के पुत्र) सम्वत् १८२३ की चैत्र सुदी ५ से १८३७ की
- आसोज सुदी १० तक ( जीवन पर्यन्त) ४३-खालसे (कामसिंघवी फतेचन्दजीके पुत्र ज्ञानमलजी देखते थे) १८३७से १८४७ मगसर सुदीर तक ४४-सिंघवी ज्ञानमलजी (फतेचन्दजी के पुत्र ) संवत् १८४७ की मगसर सुदी २ से माघ सुदी ५ तक ४५-भण्डारी भवानीदासजी (जीवनदासजी के) १८४७ माह सुदी ५ से १८५१ की वैशाख वदी १४ तक ४६-भण्डारी शिवचन्दजी (शोभाचन्दोत) १८५१ की वैशाख वदी १४से १८५४ को आसोज सुदी १४ तक ४७-खालसे (काम सिंघवी नवलराजजी देखते थे) १८५४ आसोज सुदी १ से १८५५ श्रावण वदी ४८-सिंघवी नवलराजजी (जोधराजजी के पुत्र) संवत् १८५५ की सावण वदी ६ से कार्तिक वदी ९ तक ४९-भण्डारी शिवचन्दजी (शोभाचन्दोत) १८५५ को कार्तिक सुदी१ से १८५६ की वैशाख सुदी तक ५०-मुहणोत सरदारमलजी (सवाईरामोत) १८५६ वैशाख सुदी ११ से १८५८ की आसोज सुदी ३ तक ५१-खालसे (काम सिंघवी जोधराजजी देखते थे) १८५८ आसोज सुदी ३ से १८५९ भादवा वदी २ तक ५२-भण्डारी गङ्गारामजी (जसराजजी के पुत्र) सम्वत् १८६० मगसर वदी ७ से जेष्ठ वदी १ तक ५३-मुहणोत ज्ञानमलजी ( सूरतरामजी के) १८६० जेठ वदी १ से १:१२ की आसोज सुदी ४ तक ५४-कोचर मेहता सूरजमलजी ( सोजतके )१८६२ आसोज बदी ४ से १८६४ की पासोज सुदी ८ तक ५५-सिंघवी इन्द्रराजजी (भीवराजोत) १८६४ की आसोज सुदी ८ से १८७२ की भासोज सुदी तक
• आपने अपने जीवन में २५ सालों तक "दीवान" पद का संचालन किया ।
+ जब किसी कारण वश “दीवानगी" का श्रोहदा दरबार भपने अधिकार में ले लेते थे, उस समय जबतक दूसरे ओहदेदार निर्वाचित नहीं किये जाते थे. वह मोहदा "खालसे" माना जाता था और उसके कार्य संचालन का भार वैसे ही किसी प्रभावशाली व्यक्ति के जिम्मे किया जाता था।