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श्रीसवाल जाति का इतिहास
मेहताजी की इस कारगुजारी की बड़ी तारीफ की थी । सम्बत् १९३४ में देहली दरबार में महाराज साहब की आज्ञा से आप गये थे । वहाँ आपको भारत सरकारने खिलअत आदि सम्मान किया था ।
प्रदान कर आपका
सम्वत् १९३५ में बेरी और रामपुरा के झगड़ों को निपटाने के लिये आप जयपुर भेजे गये । वहाँ पर आपने अपने कागजातों से सबूत देकर उक्त मामले को बहुत ही अच्छी तरह तय करवा लिया । इस समय आपने जिस बुद्धि-कौशल्य का परिचय दिया, उसकी तारीफ जयपुर के तत्कालीन पोलिटिकल एजंट कर्नल बेन ने बहुत ही अच्छे शब्दों में की है। इतना ही नहीं उक्त कर्नल महोदय ने आपकी कार गुजारी की प्रशंसा में बीकानेर दरबार को भी पत्र लिखा था ।
मेहता छोगमलजी बड़े कुशल राजनीतिज्ञ और दूरदर्शी सज्जन थे । आप कई वर्षो तक बीकामेर की ओर से आबू पर बकील रहे। इसके अतिरिक्त आपने और भी कई बड़े २ ओहदों पर काम किया । आप खास मुसाहिब और कौन्सिल के मेम्बर भी रहे। आपको तनख्वाह के अतिरिक्त सारा खर्च भी रियासत से मिलता था ।
आप की महान कारगुजारियों से प्रसन्न होकर बीकानेर दरबार ने डूंगराना, सरूपदेसर आदि गाँव आपको जागीरी में प्रदान किये तथा आपके कायों की प्रशंसा में बहुत से खास रुक्के बक्षे । सम्वत् १९४८ की माघ बुदी १० को आपका स्वर्गवास होगया। आपकी मृत्यु के पश्चात् बीकानेर नरेश महाराज गंगासिंहजी मातमपुरसी के लिये आपके घर पर पधारे और इस तरह आपकी सेवाओं का आदर किया ।
जैसा कि हम ऊपर कह चुके हैं, मेहता छोगमलजी को उनकी बड़ी २ कारगुजारियों के लिये तत्कालीन बीकानेर नरेशों की ओर से कई खास रुक्के ( प्रशंसा पत्र ) दिये गये थे, जिनमें से एक दो की नकल हम नीचे देते हैं ।
१ - " रुक्को खास महता छोगमलजी केसरीसिंघ दीसी सुपरसाद बंचे तथा थारे घराणो सइ दीवे सूसामधरमी वा रियासत रा खैरखाही चित राख जे जिसी भुजब थे चित राख बंदगी करो हो तेसै में बोत खुस छां हो थाने रियासत रा कारवाही वास्ते में मोत मदकर लिया छे सुजीसो थारो भरोसो छे जिसी मुजब थे बरतो छो श्रा बंदगी पीढीया तक याद रह जिसी के सूं थे सब तरे हिम्मत राख हर तेरे जलदी कारवाही करेजा तेमें मांहारी मरजी जादे बधसी व थारी बंदगी जादे समझसा श्रठेरो श्रेवाल छतरसिंघ व हुकुमसींध लिखे तो मुजब जान सो थां जीसा दाना समझवार किताहीक छे सूं थाने रियासत री सरम छे सुकही सूं संकसो नहीं जादे काही जिला संवत् १६४२ असाढ़ सुदी
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