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छ काय के बोल ।
(४१)
इन्हें साधारण वनस्पति कहते हैं। सुई की अग्र ( अनी ) ऊपर आवे इतने छोटे से कन्द मूल के टुकड़े में उन निगोदिये जीवों के रहने की असंख्यात श्रेणी हैं। एक एक श्रेणी में असंख्यात प्रतर हैं। एक एक प्रतर में असंख्यात गोले हैं। एक एक गोले में असंख्यात शरीर हैं। एक एक शरीर में अनन्त अन्नत जीव हैं। इस प्रकार ये साधारण वनस्पति के भेद जानना । यदि जीव इस वनस्पति काय की दया पालेगा तो वह इस भव में व पर भव में निराबाध परम सुख पायेगा। वनस्पति का आयुष्य जघन्य अन्तर मुहूर्ते का, उत्कृष्ट दश हजार वर्ष का । इनमें से निगोद का आयुष्य जघन्य अन्त हूते, उत्कृष्ट अन्तर्महूर्त । चवे और उत्पन्न होवे । वनस्पति काय का संस्थान अनेक प्रकार का । इनका " कुल " २८ लक्ष करोड़ जानना।
त्रस काय के भेद
बस काय-त्रस जीव जो हलन, चलन क्रिया कर सके। धूप में से छाया में जावे व छाया में से धूप में जावे उसे त्रस काय कहते हैं। उसके चार भेद-१ चे इन्द्रिय २त्रीइन्द्रिय ३ चौरिन्द्रिय ४ पंचेन्द्रिय ।।
बेइन्द्रिय के भेद-जिसके काय और मुख ये दो इन्द्रिय होवे उसे बेइन्द्रिय कहते हैं। जैसे-१ शंख २ कोड़ी
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