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करके, उनको जैनधर्म का आद्य संस्थापक घोषित किया है।
उक्त कथन से यह सिद्ध होता है कि जैन, वैदिक एवं बौद्ध पुराणों के आधार से, आद्य तीर्थंकर ऋषभेदव की मान्यता प्राचीनकाल से ही लोक में चली आ रही है। इसके अतिरिक्त भारतीय इतिहास के पृष्ठ भी ऋषभदेव का अस्तित्व घोषित कर रहे हैं।
भारत भूमि को पवित्र करनेवाले चौबीस तीर्थंकरों ने पूजा-काव्य (भक्ति काव्य) को अपने तीर्थ में सतत परम्परा रूप से प्रवाहित किया। चौबीस तीर्थकरों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है
1. इण्डियन एण्टीक्वेरी-भाग 9, पृ. 163.
जैन पृजा-काव्य का उद्धगच और विकास :: 37