________________
29.
उपभोग
30. उपशमभाव
31. उपसम्पदा
32. एषणा या उद्गम दोष: श्रमण के भोजन से सम्बन्धित सोलह दोष जिनमें से एक के भी उपस्थित हो जाने पर श्रमण वह भोजन स्वीकार नहीं
कर सकता।
33. ओघ
34. क्लेशलक्षण
35. कदलीघात 36. कषाय 37. कायोत्सर्ग
38. क्रियावादी
39. केशी
पारिभाषिक शब्दावली • xxv
: वस्तु का केवल एक बार उपयोग करना ।
: क्षमा याचना सहित ।
: पुष्टिकरण संस्कार ।
40. क्षुल्लक
: विचारात्मक पक्ष ।
: काया का पीड़न, व्रत उपवास अनशन से शरीर को कष्ट पहुंचाना।
: अकाल मृत्यु
: इन्द्रियजन्य कामनाएं।
: काया को कष्ट देते हुए तपस्या की मुद्रा जिसमें यति ध्यानलीन और नग्न होते हैं। यह मुद्रा तीन प्रकार की होती है
(i) ऊर्ध्वस्थान अर्थात खड़ी हुई; (ii) निर्षदनस्थान अर्थात बैठी हुई;
(ii) शयन स्थान अर्थात लेटी हुई । कायोत्सर्ग शरीर को कष्ट देते हुए त्यागने की विधि को भी कहते हैं। : जैन धर्म क्रियावादी है । क्रियावाद के अनुसार अभिप्रेरक से कर्मबन्ध होता है। चाहे कर्म किया जाए अथवा नहीं। मानसिक विचार मात्र से या क्रियामात्र से फल उत्पन्न होता है। सभी तत्व चैतसिक हैं अत: क्रियावान हैं। बिना ज्ञान के भी केवल क्रिया से व्यक्ति निर्वाण पा सकता है। : भगवान ऋषभ का पौराणिक नाम जो केश वल्लरी से शोभा पाने के कारण दिया गया। उन्हें केसरिया नाथ, केसरीसिंह के समान शौर्य वाले तथा केशों से युक्त दोनों अर्थ में प्रयुक्त व रूढ़ हैं।
: वस्त्रधारी