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[३] जरा होगी, किंतु ज्यादे कम कभी नहीं होसकेगी. इसलिये निश्चय और व्यवहारके भावार्थको समझे बिना शब्दमात्रको आगे करके विवाद करना विवेकी आत्मार्थियोंको तो योग्यनहींहै, इसकाभी विशेष खुलासा इसीग्रंथके क्षामणासंबंधी प्रकरणके लेखसे जानलेना. ३३-अपेक्षा विरुद्ध होकर आग्रह करना योग्य नहीं है।
मासवृद्धिके अभाव में ४महीनोंके चौमासीक्षामणे, व १२ महीनौके संवच्छरी क्षामणे करनेका कहाहै. उसकी अपेक्षा समझे बिना ही मासबढनेपरभी उसीपाठको आगे करना और ५ महीनोंके १०प. क्ष, व १३ महीनोंके २६ पक्ष शास्त्रों में लिखे हैं. उन पाठोंको छुपादेना. यह तत्त्वज्ञ आत्मार्थियोंकों योग्यनहींहै,इसीतरह जब पौष व चैत्रादि महीनेबढें तब प्रत्येकमहीनेके हिसाबसे विहारकरनेवाले मुनिमहाराजोको एककल्प चौमासेका और नवमहीनोके नवकल्प मिलकर दशकल्पीविहार प्रत्यक्षमें होताह । जिसपरभी महीनाबढनके अभावसंबंधी एककल्प चौमासेका और ८महीनोंके ८ कल्प मिलकर ९ कल्पीविहार करनेका पाठबतला करके मासबढे तबभी दशकल्पी वि. हारको निषेधकरनेकेलिये भोलेजीवोंको संशयमैगेरना यहभीविवेकी सजनोंको सर्वथा योग्यनहीं है, इसीतरह मासबढनेके अभावकी अपेक्षासंबंधी हरेकवातोंकों मासबढनेपरभी आगेलाकर उसका आग्र. हकरना और मासवृद्धिकी अपेक्षावाले शास्त्रोंकीबातोंको छोडदेना स. र्वथा अनुचितहै. इसको विशेषतत्त्वज्ञ पाठकगण स्वयंविचार लेवेंगे. ३४-- विषय छोडकर विषयांतर करना योग्य नहीं है।
५० दिनोंकी गिनतीसे दूसरे श्रावणमे या प्रथम भाद्रपदमें प. र्युषणापर्वका आराधनकरनेकी अपनेही पूर्वीचार्योंकी सत्यवातकोन. हण करसकते नहीं और पचास दिनोंकी गिनती उडानेके लिये ऐ. सा कोई दृढ बाधक प्रमाणभी दिखला सकते नहीं, इसलिये दिन प्र. तिबद्ध पर्युषणाका विषयछोडकर.होली,दीवाली,ओलीआदिक मास प्रतिबद्ध कार्योंके विषयकी बात बीचमे लाते हैं, सो भी यह असत्य आग्रहकी सूचना रूप विषयांतर करना योग्य नहीं है। क्योंकि ऐसे तो मासप्रतिबद्ध कार्यों में कितनेही महीने, और कितनेही वर्षभी छ. ट जातेहैं देखो-मास प्रतिबद्धकार्य तो एक महीनेसे करनेके होवे सो अधिक महीना होवे तब एक महीनेकी जगह कितनेक पर्व दूसरे
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