Book Title: Bhasha Rahasya
Author(s): Yashovijay Maharaj, 
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 23
________________ .......१३४ ११६ १३४ .... १३६ विषयमार्गदर्शिका विषय पृष्ठ विषय मुक्तावलीकार-दिनकरीय-नव्यमतालोचनम् .......... ११४ प्रतीत्यभाव सर्वथा अविरोधी नहीं है आनुशासनिक गुरु अर्थ में भी शक्ति है ................. भामतीकार प्रतिभायाः पलायनम् . १३१ बाधक न होने पर स्थापना में भी शक्ति है ............ ११५ कल्पतरुकार-अनेकान्तवाद निरासकल्पतरुस्थापना में निरूढ लक्षणा का भी संभव है ........... ११६ परिमलकारविज्ञानामृत-भाष्यमतकर्तनम् ........... १३२ अवतरणिकाविमर्शः..... .११६ आधुनिकानां बलदेव-दामोदर-राधाकष्णस्थापनायां विचारविशेषः ............ हिरियन्नादीनां मतसमीक्षा .......... ......... कल्पन्तरावतारवीजावेदनम् ......................... ११६ विज्ञानामृतभाष्य-श्रीकण्ठभाष्यसम्मतसत्य और स्थापनासत्य के लक्षणों में भामतीकारप्रभृतीनां समीक्षा सांकर्य नहीं है .........११६ उपनिषदां स्याद्वादसाधकत्वम् . त्प न्.................. ..........१३४ दिक्पदविवरणम् ११६ गङ्गेशमतप्रतिक्षेपः ............. ........१३४ उपाध्यसाङ्कर्यप्रदर्शनम् ११७ प्रतीत्यभाव काल्पनिक है - शंका ..... १३६ नामसत्यभाषा - ४ ............... ................ .११७ अवच्छेदकत्वस्वरूपविमर्शः मध्यस्थव्यवहार के बल से नाम भाषा सत्य ............११८ ऊहनीयंपदविचार .................. .......... १३५ यथार्थ नाम परिणामसत्य है ........ .............११९ दिगर्थनिरूपणम् ........... .............१३५ छलभाषायां विमर्शविशेषः ...........................११८ प्रतीत्यभाव सापेक्ष होने पर भी वास्तविकरूपसत्य भाषा -५........ ....१२० समाधान सदालयादि लिंग से द्रव्यलिंगी में यतिशब्दप्रयोग भौतिविकल्पप्रकटीकरणम् ... १३५ निर्जराजनक .. .............. १२१ प्रतीत्यभाव पारमार्थिक है.. ............१३७ स्थापनासत्य भाषा से रूपसत्य भाषा भिन्न है .......... १२२ पारमार्थिक भाव सापेक्ष और निरपेक्षरूप से द्विविध ...१३७ विजातीय और निर्दोष चीज में ही स्थापना होती है..१२२ बर्कलीमतप्रत्याख्यानम्. .............१३७ स्थापना और रूप भिन्न है ................. .............१२३ सङ्क्षपशारीरककारप्रतीत्यसत्य भाषा - ६................. ... १२३ मुक्तावलीकारमतखण्डनम् ....................... १३८ अभिनवप्रतिबध्यतावच्छेदकप्रदर्शनम् ...... .............१२४ जलसंचार के पूर्व भी शराव में गन्ध की सिद्धि .......१३८ लक्षणदर्शनपूर्वं प्रतीत्यसत्यायां निदर्शनान्तराणि ........१२४ । पिलुपाकवादी की शंका ............. .... १३९ गलत निमित्त बताने पर भाषा मृषा ......................१२५ गन्धनाशकल्पना अयुक्त - स्याद्वादी......................१३९ निमित्त के भेद से विरोध का परिहार .................. १२६ प्रशस्तपादभाष्यमतनिरासः ......... ............ १३९ भासर्वज्ञमतापाकरणम् ........... १२६ द्वित्वादि अपेक्षाबुद्धि से जन्य है - नैयायिक ............१४० द्रष्टान्त और दान्तिक में वैषम्यता की शंका .......१२६ द्वित्वादि अपेक्षाबुद्धि से व्यङ्ग्य है-स्याद्वादी..... निमित्त के अनेक भेद हैं - समाधान ....................१२७ द्वित्व में चैत्रीयत्व न होने से नैयायिकमत तत्त्वोपप्लव-न्यायभूषणकारमतनिराकरणम् .............. अस्वीकार्य .......... ............१४१ निंबार्कभाष्य-निबाकभाष्यटीका-वेदान्तदीप कल्पलताविरोधपरिहास .............. ............१४१ भास्करभाष्यभामती-न्यायभूषण-श्रीकण्ठभाष्य प्रशस्तपादभाष्यस्य अप्रशस्तत्वप्रतिपादनम् .......... १४२ हेतुबिन्दुटीकाकारमतसमीक्षा ....... .............१२९ व्यवहारसत्यभाषा -७................. ..............१४३ प्रमाणवार्तिककारमतनिरासः .......... ............. १३० व्यङ्ग्यभावे द्वैविध्यनिरूपणम् एक धर्मी में अवच्छेदक भेद से विलक्षण 'नदी पीयते' वचनप्रयोजनम् ...... १४३ प्रतीत्यभावों का समावेश. ......१३४ व्यवहारसत्यभाषा के दृष्टान्त .............................१४४ ........... १४० १२८

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