Book Title: Bhasha Rahasya
Author(s): Yashovijay Maharaj, 
Publisher: Divyadarshan Trust

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Page 21
________________ विषय भाष्यमाणा भाषा- यह भाषालक्षण अव्याप्तिदोषग्रस्त-पूर्वपक्ष संस्कार आधान करने पर भी निसरणभाषा में शब्दपरिणाम रहता है. सूक्ष्म ऋजुसूत्रनय से भी 'भाष्यमाणा भाषा' सिद्धान्त तथ्यहीन भाष्यमाणा भाषा- सिद्धान्त क्रियारूप भावभाषा के उद्देश्य से है- उत्तरपक्ष प्रमेयकमलमार्तण्डकारमतापाकरणम् . एवंभूतनय से भाषण के पूर्वोत्तरकाल में भाषा का निषेध. भावभाषा का प्रतिपादन वचन भावभाषा नहीं है - पूर्वपक्ष वचन भावभाषारूप है - उत्तरपक्ष अर्थघटन परिभाषाकार की इच्छा के अनुसार शब्दप्रमाण नहीं है- बौद्ध .. विकल्प और शब्द में कार्यकारणभाव - बौद्ध अनुमान प्रमाण है- बौद्ध. मिथ्यात्वकल्पनापेक्षया सत्यत्वकल्पने लाघवोपदर्शनम् . शब्द निर्णायक होने से प्रमाण है- स्याद्वादी शब्दस्थल में प्रतिबन्दी सामग्री कार्यजनक है न्यायकन्दलीकारलीलावतीकारोक्तिकर्तनम्. शब्द स्वतन्त्रप्रमाण नहीं है- वैशेषिक शब्द स्वतन्त्रप्रमाण है- स्याद्वादी. व्यतिरेकव्यभिचार से भी शब्द अनुमानरूप नहीं है न्यायकन्दलीकार निरूपणस्यान्याय्यत्वम् अनुमान भी प्रमाण नहीं है - नास्तिक सम्भावना से प्रवृत्ति की उपपत्ति - चार्वाक . अनुमान भी निश्चायक होने से प्रमाण है-जैन संभावनापक्ष में लाघव - नास्तिक. संशय की अपेक्षा निश्चय का स्वरूप गुरुभूत है - चार्वाक धूमदर्शन का कार्यतावच्छेदक संभावनात्व नहीं है - स्याद्वादी. विषयमार्गदर्शिका पृष्ठ .५१ .५२ .५४ ५४ .५४ .५४ .५५ .५६ .५६ .५७ .५७ ५८ .५९ .६१ .६० .६० .६१ .६३ .६१ .६२ .....६३ .६३ .६४ .६४ .६४ .६४ .६६ .६६ विषय नास्तिकमत में प्रसिद्ध अवधारण की अनुपपत्ति... निश्चयत्वोपक्षया संभावनात्वस्य कार्यतावच्छेदकत्वे लाघवम्. लाघवत्रैविध्यप्रदर्शनम् . सम्भावनात्वस्य कार्यतावच्छेदकत्वे. प्रतिबध्यतावच्छदेकगौरवम् चार्वाक के मत में अनुव्यवसाय की अनुपपत्ति आगमप्रमाण से भी भाषा में निश्चायकत्व भावभाषा के तीन भेद पर्याप्त और अपर्याप्तरूप से भाषा द्विविध अवधारणीयत्व का तात्त्विक अर्थ अवधारणीयत्वलक्षणविमर्शः सत्यभाषालक्षण-व्यवहारनय से परिभाषास्वरूपाकलनम् असत्य, मिश्र, अनुभय भाषा का लक्षणव्यवहार नय से परिभाषा प्रश्नार्ह नहीं है भाषा के दो भेद हैं - निश्चयनय 'द्रव्यं रूपवत्' वाक्यविचार 'अशोकवनं' वाक्यविचार बन्धहेतुभङ्गप्रकरणविरोधपरिहारप्रकारः कर्मधारय समासस्थल में अर्थबोध प्राधान्यप्रतिपादन की दृष्टि से मिश्रभाषा भी व्यवहारसत्य असत्यामृषा भाषा स्वतन्त्र नहीं है - निश्चयनय आज्ञापनी भाषा सत्यभाषा भी है- प्रज्ञापनासूत्र प्रज्ञापनासूत्र का समर्थन, संभावनाअभिप्राय से जातिसूत्र की उपपत्ति आज्ञापनीभाषा में सत्याऽसत्यान्यतरत्व निश्चित है स्त्र्यादिलक्षणप्रतिपादनम् . प्रज्ञापनी भाषा भी सत्य भाषा है वेदानुगतलक्षणप्ररूपण की अपेक्षा प्रज्ञापनी सत्यभाषा है. भाषा के भेद चार हैं - व्यवहारनय इतिनञ्पदार्थप्रदर्शनम् ... अवतरणिकाचतुष्कावेदनम् (xviii) पृष्ठ ६८ .६७ ६७ ६८ ६८ ६८ ६९ ७० ७१ .७१ ..७१ .७३ ...७४ .७३ .७५ .७५ ..७५ .७६ ..७७ .७६ .७७ .७७ ७८ .७९ ८० ८१ ८२ ८१ ८२ ८३ ८३ ८४

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