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इस ग्रन्थ के अच्छे मुद्रण के लिए आचार्यश्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा के केतनभाई एवं उनकी टीम को भी धन्यवाद है। इस ग्रन्थ में जिनका भी प्रत्यक्ष-परोक्ष सहकार प्राप्त हुआ है उन सभी को हार्दिक धन्यवाद अधिकृत मुमुक्षु अभ्यासी वर्ग इस ग्रन्थ का साद्यन्त अवगाहन - निमज्जन कर के आत्मश्रेय प्राप्त करे यही अन्तर की अभ्यर्थना!
चाह नहीं इतिहासों की स्याहि में नामनिशान रहे। चाह नहीं जग के गीतों में मेरा गौरव गान रहे।
मरुधर जैन संघ, हुबली
श्रावण सुद
१४, २०४७
चाह यही है मेरे मुख में तेरा मंगल-गान रहे। परोपकार के पावन पथ में बस मेरा विश्राम रहे ।।
फ्र
(xvi)
मुनि यशोविजय